काश! तुम आ जाते
कई बार देखा है,
लोग झिड़क देते हैं उन्हें,
बच्चे, जवान, प्रौढ़-
हर उम्र का व्यक्ति -
बस झिड़कता है उन्हें।
कभी किसी के आगे
हाथ नहीं फैलाते
लेकिन मैंने देखा है,
प्लेटफॉर्म पर,
इसके पास,
उसके पास जाकर
ध्यान से चेहरों को
अपनी नज़रों से टटोलते हुए,
जैसे कुछ खोज रहे हों।
फिर चुप-चाप में खड़े हो जाते हैं,
'आगे बढ़ो बाबा, आगे बढ़ो '
आसपास से आवाज़ें पहले आने लगती हैं,
लेकिन उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता
इन आवाज़ों से ।
वे भीख कहाँ मांगते हैं
किसी से
वे तो खोज रहे हैं
उस बेटे को,
जो साल भर पहले
उन्हें इसी प्लेटफॉर्म पर छोड़कर
ग़ायब हो गया था,
पानी लाने के बहाने।
वे अब तक प्यासे हैं,
स्नेह के...........
लगाव के..........
इज़्ज़त के,
और........
पानी की उस बोतल के
जो बेटा अपने साथ ले गया।
(सच्ची घटना पर आधारित)
(01/10/2020)
(वंदना अवस्थी दुबे (दीदी)की हिन्दी कविता
का अँग्रेजीअनुवाद
Old Man On The Platform
Many a times
I have seen him
On the platform
Walking end to end,
His eyes searching for
Something,or someone
Among men of every age:
Growing, grown ups
And men of age,
And of experience.
Insensitive lots at platform
Taking him to be a beggar,
And treating him the same way,
Disliked him absurdly
And shied away
Having disdainful look at him
All for no reason.
The old man was not begging,
He was a distraught Columbus
Searching the shore
In the sea of human crowd
His interrogative look
Was searching for something
On every face,
In everyone’s eyes.
When felt tired,
He leaned against a cart
Full of boxes
For some rest.
Passengers disliked his presence
Looking at his dishevelled attire,
Uncombed grey hair.
Reason found no space.
Now some people started shouting,
“Move away from here, go away”.
But such sounds made no sense
As he was not begging,
He was searching for his son
Who has left him here a year ago
On the pretext to bring water for him.
He still has the thirst
But of affection and respect,
Not of bottled water.
Rajiv/7/12/21
ओह , इस संसार में भांति भांति के लोग .... मर्मस्पर्शी .
ReplyDeleteधन्यवाद,दीदी।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार. 20 दिसंबर 2021 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मार्मिक सृजन और बेहतरीन अनुवाद।
ReplyDeleteसादर।
मर्म को छूती, हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद।
बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसच में कितने प्यासे होंगे वे जिन्हें अपनों ने इस कदर प्यासा छोड़ा हो।
ऐसे मार्मिक प्रसंग देख-सुन कर ह्रदय विदीर्ण हो जाता है | भावभीनी प्रस्तुति | आँखे और मन दोनों को भिगोती हुई |
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