Sunday, January 22, 2012

"लोग समझते हैं मैं कवि हूँ"

मैं तो
शब्दों के पीछे
दौड़ता-भागता हूँ
जैसे कोई बच्चा
दौड़ता है
रंग-बिरंगी
तितलियों के पीछे.

करता हूँ इन्तजार
फूलों की डालियों पर
उसके बैठने का,
फिर
करता हूँ
सहज दिखने का
सजग प्रयास.
धीरे-धीरे
चपलता से
चुपचाप
जाता हूँ
उसके बिलकुल करीब
पंखों से
पकड़ लाता हूँ उसे

बड़े गौर से
निहारता हूँ,
निरखता हूँ
उसके सतरंगी पंख.

देखता हूँ
उसकी आँखों में
दहशत-भरी बैचैनी.
उसकी विवशता,

देखता हूँ
कैद में मचलता
उसका शरीर,
उसकी आँखों में
उड़ान की ललक.

काँप उठता हूँ
सोचकर
अपना हाल ,
जन्म के बाद
हरपल
उस अनचाहे,
अनजाने बंधन से
मुक्ति की चाह.

उसकी उड़ान में
पाता हूँ
अनायास ही
अपने मन की
उन्मुक्त उड़ान.

ढीली हो जाती है
मेरी पकड़
उसके पंखों पर,
उसके साथ ही
मैं भी उड़ जाता हूँ ,
फूलों की घाटी की ओर.

कितना भाता है
अचानक
उसका उड़ जाना,
उड़कर
फिर से फूलों पर
मंडराना.

मैं तो बस यूँ ही
कुछ देर
खेलता हूँ
शब्दों के संग
आँख-मिचौली का खेल
चोर-सिपाही बनकर
कभी उन्हें पकड़ता हूँ,
कभी पकड़ा जाता हूँ.

पर
क्या करूँ
मैं उनका
जो समझते हैं
मैं कवि हूँ
शब्दों के मर्म
समझता हूँ.

32 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!

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  2. वाह, शब्दों से खेलकर कवि कहलाने से अधिक आनन्द है, बच्चों की तरह कविहृदय रखने में...

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  3. वाह ...बहुत बढि़या।

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  4. बहुत खूब ... शब्दों से खेलना ही तो कवि होना है ...
    लाजवाब अभिव्यक्ति ....

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  5. हाँ कवि ऐसे ही होते हें जो औरों में खुद जी लेते हें और उनके दर्द को उसी शिद्दत से शब्दों में ढाल कर पेश कर देते हें. हम गलत नहीं समझते हें. बहुत सुंदर रचना.

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  6. भावनायों और शब्दों से आपका ये साथ यूँ ही बना रहें ....

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  7. शब्दों से खेलने की कला तो कोई आपसे सीखे. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  8. .



    पर
    क्या करूं
    मैं उनका
    जो समझते हैं
    मैं कवि हूं
    शब्दों के मर्म
    समझता हूं…


    समझने वालों को क्या समझाया जाए…
    बहुत ख़ूब!
    राजीव जी

    सुंदर शब्दावली में गूंथी है आपने रचना …
    शब्दों की तितलियां जब पकड़ में आ जाती हैं तो बस…

    हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. क्या बात है...बेहतरीन!!

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  11. बहुत सुंदर कविता। मन को छू गयी । .बेहतरीन!! ।

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  12. shabdo ke saath aapki khel behtareen lagi... kahin dil ko chooo gayeee:))

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  13. कैसे ना माने कवि आपको देखिये कभी शब्दों के फूल खिलाते हैं, कभी तितली बनकर फूल-फूल मंडराते हैं... बहुत सुन्दर

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  14. Dr.Jenny shabnam jenny.shabnam@gmail.com
    5:46 PM (18 hours ago)to me

    Rajiv ji,
    apne blog ka link bheje. bahut achchhi rachna hai.
    shubhkaamnaayen.
    jenny

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  15. rashmi prabha to me
    मैं तो बस यूँ ही
    कुछ देर
    खेलता हूँ
    शब्दों के संग
    आँख-मिचौली का खेल
    चोर-सिपाही बनकर
    कभी उन्हें पकड़ता हूँ,
    कभी पकड़ा जाता हूँ.... यही कुछ देर सदी भी बन उठता है

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  16. minakshi pant pant to me

    waah bahut sundar rachna :)

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  17. Suman Patil suman
    to me

    लोग सच ही समझते है .....

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  18. Ravindra koshtirn@gmail.com
    to me


    Bahut badhiya!!!!!!!!

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  19. Bhawna Kunwar bhawnak2002@gmail.com
    to me

    ढीली हो जाती है
    मेरी पकड़
    उसके पंखों पर,
    उसके साथ ही
    मैं भी उड़ जाता हूँ ,
    फूलों की घाटी की ओर.
    Bahut khub ukera hai aapne bebasi ke dard ko....bahut2 badhai....

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  20. Nirmla Kapila nirmla.kapila@gmail.com
    to me

    बहुत अच्छी कविता भावमय। बधाई। लिन्क नही मिला।

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  21. kavi ke paas sirf shabd nahin samvedna bhi hoti hai...

    पर
    क्या करूँ
    मैं उनका
    जो समझते हैं
    मैं कवि हूँ
    शब्दों के मर्म
    समझता हूँ.

    sundar rachna, badhai sweekaaren.

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  22. उसकी उड़ान में
    पाता हूँ
    अनायास ही
    अपने मन की
    उन्मुक्त उड़ान.

    ढीली हो जाती है
    मेरी पकड़
    उसके पंखों पर,
    उसके साथ ही
    मैं भी उड़ जाता हूँ ,
    फूलों की घाटी की ओर.

    बहुत सुन्दर...
    हर इंसान के अन्दर इसी तरह की छटपटाहट है कहीं न कहीं...

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  23. bahut hi sunder rachna rajeev ji har shabd apni baat kahata sa ..............gaharai se ukeri hui prastuti .

    bahut dino baad aapki kavita aayi .......swagat hai aur badhai swikaren rajeev ji

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  24. Shashi jee,
    Bahut-bahut dhanywad.Bahut sambalkari hain aap sabki baatein.
    Aabhar.

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  25. Lambi bimari ke baad aap sabko padhne ka avsar mila... bahut achchhi rachna hai ye ... bahut2 badhai..

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  26. बहुत ही उम्दा अंतरद्वन्द |

    सादर |

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  27. bahut behtreen Rachna....
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  28. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  29. मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है।आशा है आपको मेरी रचनाएँ पसन्द आएँगी और आप मुझे फॉलो करेंगे।प्रतीक्षा रहेगी।

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  30. बहुत सुंदर कोमल भावों की शानदार अभिव्यक्ति कवि प्रकृति के साथ एकमेक होकर कैसे शब्दों से रचनात्मक सृजन कर बैठता है और यह समझता है कि वो स्वयं प्रकृति का हिस्सा हैं।
    सुंदर सृजन।

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