किसी महानगर की मौत पर मत रोना ,
जश्न मानना जश्न कि पहाड़ पत्थर नही बनेंगे,
बादल आवारा नही भटकेंगे अपने घर,
और धरती "पाताल-कब्र" नही बनेगी ।
मरता शहर ,,
चाहे कोलकाता हो या दिल्ली या फ़िर लन्दन या पेरिस
मरेगा ही
क्योंकि यहाँ सब"प्यासे " हैं ।
पानी कहाँ है?
पानी नहीं है
पत्थर है ,सूखे पेड़ हैं सोना-चांदी सब है
कारें हैं ,उनमें बैठे लोग हैं ,भीड़ भरी बसें हैं,
बस नहीं है तो सिर्फ़ पानी ।
हरे-भरे पहाड़ नहीं हैं,नदियाँ नहीं हैं ,
हाँ,नदियों सरीखे नालों की भरमार है ।
मुझे यहाँ प्यास बहुत लगती है ,चाहतें बढ़ जाती हैं,बढती जाती हैं ,
विस्मृति बहुत होती है और होता रिश्तों को भूलने का भय ।
रोना है तो पहाडों की मौत पर,पेडों के कत्ल पर रोओ
और रोओ अपनी बर्बादी पर ।
जरा गौर से देखो यह महानगर नही है,
ये तो तुहारे विश्वाशों की ,तुम्हारे संस्कारों की कब्र है ।
यहाँ तुम्हारा शरीर ,तुम्हारी चाहत है ,
बस सिर्फ़ तुम नही हो
क्योंकि "पानी" नहीं है -न तुम्हारे भीतर ,न तुम्हारे बाहर ।
यह निर्णय तो तुम्हारा होगा--
पहाड़ चाहिए या फ़िर सूखे पेडों के ढेर ,
हरे-भरे जंगल ,नदी ,झरने या तपता रेगिस्तान।
Dil Ka Aashiyana Where Every Relation has Its Relavance,Every Individual has his Place.Humanity Reigns Supreme.
Wednesday, August 26, 2009
तुम मुझे याद नही रख पाओगी .........
मैं जानता हूँ ,
तुम मुझे याद नही रख पाओगी
अपनी यादों के "एल्बम" में सजाकर रख दोगी
और कुछ खास-खास मौकों पर
एक नजर देख लिया करोगी,बस
यही सच मैंने आज तक जिया है ,
इसी सच के सिलसिले का शिकार रहा हूँ अबतक।
तुम्हें लगता होगी ऐसी बातें कर
मैं तुम्हारा दिल दुखाना चाहता हूँ ।
नही ,कदापि नही
मैं तो तुमको सच के करीब लाना चाहता हूँ ।
मुझे पता है मैं दर्द बनकर ठहर नही पाऊँगा ,
तुहारे मन-आँगन में
मैं तो बस दर्द की तस्वीर बनकर रह जाऊँगा ,
घाव का एक निशान भर
जो तुम्हें मेरी याद तो दिलाएगा ,
दर्द नहीं जगायेगा ।
मैं तुम्हें मीरा की तरह आंसुओं में डूबा नही देखना चाहता ।
समय तुम्हें समझा देगा ,
तुम किसे याद रखोगी -मुझे या मेरी तस्वीर को ।
गिरावट का दौर
चिढ़ सी होती थी कभी
कुत्तों को रोटी के टुकडों पर झपटते देखकर
अब तो कुत्ते भी चिढ़ने लगे हैं
अपनी नक़ल होते देखकर .
कुत्तों को रोटी के टुकडों पर झपटते देखकर
अब तो कुत्ते भी चिढ़ने लगे हैं
अपनी नक़ल होते देखकर .
शिकारी आएगा ..............
तुमने शब्द लिए ,शरीर लिया
आत्मा नही ली ,भाव नही लिए
तुम तो बस कहते रहे ,कहलवाते रहे
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही "
तुमने न तो "शिकारी" देखा है,न ही जाल
और न ही समझा है लोभ से उसमें फँसना
यही कारण है कि हमेशा कि तरह
इसबार भी तुम "जाल" में हो अमानवीय कृत्यों के
कहीं आतंकवाद ,तो कहीं सम्प्रदायवाद के
हर बार तुम आतंकवादी हो कभी यहाँ तो कभी वहां
सिंदूर पोंछते हुए ,गोद उजाड़ते हुए
हजारों बच्चों को अनाथ बनाते हुए
तुम न तो ईसा हो न बुद्ध ,न पैगम्बर
तुम तो गाँधी भी नही हो
तुम तो कि खाल ओढे
कभी सिख ,कभी ईसाई ,कभी हिंदू तो कभी मुसलिम हो
तुम इन्सान न तब थे और न ही अब हो
तुम तो हैवान हो ,हैवान
क्योंकि तुम अब भी कह रहे हो
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही " जाल के भीतर से
आत्मा नही ली ,भाव नही लिए
तुम तो बस कहते रहे ,कहलवाते रहे
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही "
तुमने न तो "शिकारी" देखा है,न ही जाल
और न ही समझा है लोभ से उसमें फँसना
यही कारण है कि हमेशा कि तरह
इसबार भी तुम "जाल" में हो अमानवीय कृत्यों के
कहीं आतंकवाद ,तो कहीं सम्प्रदायवाद के
हर बार तुम आतंकवादी हो कभी यहाँ तो कभी वहां
सिंदूर पोंछते हुए ,गोद उजाड़ते हुए
हजारों बच्चों को अनाथ बनाते हुए
तुम न तो ईसा हो न बुद्ध ,न पैगम्बर
तुम तो गाँधी भी नही हो
तुम तो कि खाल ओढे
कभी सिख ,कभी ईसाई ,कभी हिंदू तो कभी मुसलिम हो
तुम इन्सान न तब थे और न ही अब हो
तुम तो हैवान हो ,हैवान
क्योंकि तुम अब भी कह रहे हो
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही " जाल के भीतर से
Tuesday, August 11, 2009
धृतराष्ट्र की अंतर्वेदना
क्या तुम मेरे धृतराष्ट्र होने का `पाप` माफ़ करोगे
क्या माफ़ करोगे मेरी पत्नी गांधारी को
जो आंखों पर पट्टी बांधे मेरे आगे-पीछे घूमती रहती है ,
मैंने अपनी कुत्सित अभिलाषाओं और इच्छाओं को
अपने बच्चों की रगों में दौड़ाया है
गांधारी को रोका है पतिव्रत की याद दिला कर
ताकि वह बच्चों को सही राह न दिखला सके
मैंने सदियों पहले भी यही पाप किया था,
करता गया ,करता गया ,करता गया ............
और आज भी किए जा रहा हूँ
मैं "आंखों वाला धृतराष्ट्र " पैदा कर रहा हूँ
यह जानते हुए भी कि निर्दोष दुर्योधन
एक दिन मुझसे सवाल करेगा
"मेरा कसूर क्या है ,पापा?
फिरभी मैं अपने को रोक नही पता हूँ
शकुनी मुझ पर हावी है
और मैं एक युग हो गया हूँ -"धृतराष्ट्र युग "
क्या माफ़ करोगे मेरी पत्नी गांधारी को
जो आंखों पर पट्टी बांधे मेरे आगे-पीछे घूमती रहती है ,
मैंने अपनी कुत्सित अभिलाषाओं और इच्छाओं को
अपने बच्चों की रगों में दौड़ाया है
गांधारी को रोका है पतिव्रत की याद दिला कर
ताकि वह बच्चों को सही राह न दिखला सके
मैंने सदियों पहले भी यही पाप किया था,
करता गया ,करता गया ,करता गया ............
और आज भी किए जा रहा हूँ
मैं "आंखों वाला धृतराष्ट्र " पैदा कर रहा हूँ
यह जानते हुए भी कि निर्दोष दुर्योधन
एक दिन मुझसे सवाल करेगा
"मेरा कसूर क्या है ,पापा?
फिरभी मैं अपने को रोक नही पता हूँ
शकुनी मुझ पर हावी है
और मैं एक युग हो गया हूँ -"धृतराष्ट्र युग "
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युग
Thursday, August 6, 2009
कर्मफल - कड़वा सच
तुम्हारे लगाये पेडो पर फल हमारे होंगे
तुम्हारे बोए खेतों की फसल हमारी होगी
चाहे आम लगाओ या बबूल
डालो गेहूं या धतूरे के बीज
जीवन या नशा सबकुछ हमारा होगा
तुम तो चले जाओगे कर्मभूमि से
शेष रहेगा कर्मफल
हमारे लिए
जो तुम्हारा निर्बल पर हमारा सबल कल है
हम तुम्हारी संतानें ,तुम्हारा तथाकथित भविष्य
तुम्हारे कर्मों, करतूतों के शिकार होंगे
अपना वर्तमान खोजेंगे तुम्हारे बीते हुए कल में
अपने कर्म की सच्चाई पर तुम हंसोगे या रोओगे
पता नही
क्योंकि तुम्हारी हालत होगी मिदास(Midas)जैसी
और हम ,तुम्हारी संतानें ,
होंगे सोने की मूर्तियाँ
तुम्हारे बोए खेतों की फसल हमारी होगी
चाहे आम लगाओ या बबूल
डालो गेहूं या धतूरे के बीज
जीवन या नशा सबकुछ हमारा होगा
तुम तो चले जाओगे कर्मभूमि से
शेष रहेगा कर्मफल
हमारे लिए
जो तुम्हारा निर्बल पर हमारा सबल कल है
हम तुम्हारी संतानें ,तुम्हारा तथाकथित भविष्य
तुम्हारे कर्मों, करतूतों के शिकार होंगे
अपना वर्तमान खोजेंगे तुम्हारे बीते हुए कल में
अपने कर्म की सच्चाई पर तुम हंसोगे या रोओगे
पता नही
क्योंकि तुम्हारी हालत होगी मिदास(Midas)जैसी
और हम ,तुम्हारी संतानें ,
होंगे सोने की मूर्तियाँ
Wednesday, August 5, 2009
नारी की नियति
यदि तेरा पति राम होगा
तुम्हें अयोध्या छोड़नी ही पड़ेगी
अग्नि परीक्षा तेरी नियति होगी
कई -कई लक्षमण रेखाएं भी पार करनी पड़ेगी
मृग मरीचिका के पीछे दौड़ता तेरा पति
तुझे पीछे छोड़ जाएगा
वृद्ध जटायु अ़ब नहीं है
लक्षमण तेरी बातों से आहत है
हनुमान तो खोजी है ,खोजी
बस और कुछ नहीं
पर तुम्हारा जीवन तो "बनवास " और "अग्नि परीक्षा "से आगे भी बहुत कुछ है
तुम्हारा जीवन एक खोज है
खोज एक सच्चे जीवन-साथी की
तुम्हें पति चाहिए.परमेश्वर नहीं
धरती मां की गोद नहीं ,असमय की मौत नहीं
यदि तुम्हारे पति पांडव होंगे
तो हालतऔर भी बदतर होगी
हर आखरी दाव पर तुम होगी ,सिर्फ़ तुम
कोई कृष्ण नहीं होगा
सिर्फ़ चीरहरण होगा ,चीरहरण अज्ञातवास होगा और पुत्र शोक भी
तुम होगी -महज एक औरत
अपने इस हालत के लिए जिम्मेवार .
तुम्हें अयोध्या छोड़नी ही पड़ेगी
अग्नि परीक्षा तेरी नियति होगी
कई -कई लक्षमण रेखाएं भी पार करनी पड़ेगी
मृग मरीचिका के पीछे दौड़ता तेरा पति
तुझे पीछे छोड़ जाएगा
वृद्ध जटायु अ़ब नहीं है
लक्षमण तेरी बातों से आहत है
हनुमान तो खोजी है ,खोजी
बस और कुछ नहीं
पर तुम्हारा जीवन तो "बनवास " और "अग्नि परीक्षा "से आगे भी बहुत कुछ है
तुम्हारा जीवन एक खोज है
खोज एक सच्चे जीवन-साथी की
तुम्हें पति चाहिए.परमेश्वर नहीं
धरती मां की गोद नहीं ,असमय की मौत नहीं
यदि तुम्हारे पति पांडव होंगे
तो हालतऔर भी बदतर होगी
हर आखरी दाव पर तुम होगी ,सिर्फ़ तुम
कोई कृष्ण नहीं होगा
सिर्फ़ चीरहरण होगा ,चीरहरण अज्ञातवास होगा और पुत्र शोक भी
तुम होगी -महज एक औरत
अपने इस हालत के लिए जिम्मेवार .
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