काँटों-भरी
अपनी हरियाली के संग
जीते रहे जीवन पर्यंत,
भूलकर अपना सारा दर्द
मुस्कुराते रहे
अभावों के शुष्क रेगिस्तान में,
समय के बेरहम थपेड़ों से
बेहाल
करते रहे
बारिश के आने का इन्तजार ,
देखते रहे
एकटक
उम्मीद के बादलों से भरा
सूना आकाश.
सूरज को रखकर
सदा अपने सर-आँखों पर,
उसकी तपती छांव में
सुख के रिमझिम फुहारों का
बिना किये इन्तजार
लगाते रहे बाग़,
श्रम के स्वेद-कणों से
भिगोते रहे जमीन
उगाते रहे फूल
तुम्हारे लिए
बिना मांगे
अपने श्रम का
प्रतिदान.
गुलाब के चाहने वालों
काँटों के बिना
बस फूलों की करो बात,
काँटों की तो हर जगह
एक सी ही है जात.
पर
तुम्हें
कहाँ दिखाई देता है
काँटा अपने गुलाब का,
कहाँ दिखाई देता है
हमारा त्याग.
हमने
स्वेच्छा से चुनी है
अवसरों की उसर जमीन
ताकि गुलाब को मिल जाए
हरा-भरा उपजाऊ मैदान,
फिर भी
कहाँ भाए तुम्हें
काँटों के बीच खिलते
"कैक्टस के फूल"
खुले आसमान के
नीले छप्पर तले
ओढ़कर
चाँद की शीतल चांदनी
सपनों के सिरहाने
रखकर अपना सर
बेफिक्र हो सोते रहे,
मुट्ठी-भर मिटटी में भी
मुस्कुराकर जीते रहे
अपने विश्वास के सहारे
अपनों के साथ
आजतक.
(समाज के उस बड़े हिस्से को सादर समर्पित जो हमें सबकुछ देकर आज भी सर्वथा उपेक्षित है )
आपकी पोस्ट पढ़कर किसी का बहुत प्यारा-सा शेर याद आ गया.आप भी देखिये;-
ReplyDeleteहम क्यों कहें दिन आजकल अपने खराब हैं.
काँटों से घिर गए हैं, समझ लो गुलाब हैं.
Rajeev ji bahut acchha likht hain aap.. badhai.. Bahut hi gahrai se aap kavya-muddon ke beech utarte hain.. bahut bahut Badhai..
ReplyDeleteगुलाब के चाहने वालों
ReplyDeleteकाँटों के बिना
बस फूलों की करो बात,
काँटों की तो हर जगह
एक सी ही है जात.
पर
तुम्हें
कहाँ दिखाई देता है
काँटा अपने गुलाब का,
कहाँ दिखाई देता है
हमारा त्याग.
waah behtreen abhivyakti ......bahut sunder bhavo se sajaya hai aapne badhai ..........
Arun Roy to me
ReplyDelete" आदरणीय राजीव जी वर्तमान कविता कैक्टस के स्थापित विम्ब को बदल रहा है और एक नई संवेदना का सृजन कर रहा है. हाशिये पर लगे कैक्टस के प्रति आपकी दृष्टि कैक्टस और इसके फूल को देखने का नजरिया बदल रही है... अच्छी कविता.. सादर अरुण ."
Jyoti Mishra to me
ReplyDelete"its beautiful...
u wrote it with so much emotions :)"
vandana gupta to me
ReplyDelete"बेहद गहन चित्रण किया है"
Rakesh Kumar to me
ReplyDelete"आपकी यह बहुत सुन्दर प्रस्तुति है,राजीव जी.
आभार,
राकेश कुमार {ब्लॉग: मनसा वाचा कर्मणा}"
खुले आसमान के
ReplyDeleteनीले छप्पर तले
ओढ़कर
चाँद की शीतल चांदनी
सपनों के सिरहाने
रखकर अपना सर
बेफिक्र हो सोते रहे,
बेहतरीन प्रस्तुति ।
आज 03-09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
उपेक्षित वर्ग के लिए बहुत सार्थक बिम्ब ले कर रची गयी रचना मन को छू गयी
ReplyDeleteकैक्टस के फूलों का मर्म बताती यह कविता।
ReplyDeleteसुन्दर, संकेतात्मक, सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर बधाई...
--अब समाज व साहित्य में यही होरहा है कि केक्टसों की महत्ता बढाई जारही है,बिना सोचे समझे....गुलाबों पर केक्टसों को महत्त्व दिया जारहा है ...यही सामाजिक विश्रीन्खालता का कारण है ...सुनिए...
ReplyDeleteकेक्टस के फूल तो,
साल में कभी कभार आते हैं ;
सिर्फ कुछ समय के लिए,
स्वयं की उपेक्षा का दुःख उठाते हैं,
क्या वे किसी के काम आते हैं ?
पूछो गुलाब के फूलों से जो,
सदा काँटों के बीच रहकर ,
सर्वदा दुःख उठाते हैं,
फिर भी अपनी खुशबू व-
स्नेहिल प्रसन्नता ,
दूसरों को लुटाते हैं ,
मुस्कुराते हैं ||
बहुत सुन्दर...!!!
ReplyDeleteआपकी आला दर्जे की रचना है यह...समाज की सचाई है...इसे कटु भी क्यों कहूं ? सच तो सच ही होता है ,कडवा या मीठा नहीं !
ReplyDeleteऐसी रचनाएँ 'अंतर्जाल' पर कम ही मिलती हैं !
Dr_JOGA SINGH KAIT JOGI to me
ReplyDelete"राजीव कुमार जी आपने एक अछुते विषय को लेकर जो रचना बुनी है,वास्तव में सराहानीय रचना है.क्योकि ये रचना हर हाल में काम करणे को प्रेरित करती है.साधुवाद"
http://drjogasinghkait.blogspot.com
दिल को छू गयी आपकी यह रचना...बहुत बढ़िया..आभार
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लाग पर...
Devendra Dutta Mishra -
ReplyDelete"गुलाब के चाहने वालों
काँटों के बिना
बस फूलों की करो बात,
काँटों की तो हर जगह
एक सी ही है जात.
पर
तुम्हें ,
कहाँ दिखाई देता है
काँटा अपने गुलाब का,
कहाँ दिखाई देता है ।
मानव संवेदनाओं को जगाती अभिव्यक्ति।"
Nirmal Gupta to me
ReplyDelete"बारिस नहीं बारिश ....ठीक कर लें"
निर्मल गुप्त
You captured a lot in these few words. You write really well...
ReplyDeletesudhir raghav to me
ReplyDelete"nice poem."
http://sudhirraghav.blogspot.com/2011/08/blog-post_28.html
Prerna Argal to me
ReplyDelete"bahnut sunder gahanabhibyakti liye .bahut badhaai aapko.thanks."
www.prernaargal.blogspot.com
हमने
ReplyDeleteस्वेच्छा से चुनी है
अवसरों की उसर जमीन
ताकि गुलाब को मिल जाए
हरा-भरा उपजाऊ मैदान,
फिर भी
कहाँ भाए तुम्हें
काँटों के बीच खिलते
"कैक्टस के फूल"
Bahut hi Sunder....
bahut hi achhi rachna, vidyalaya mai padhi 'mai majdur mujhe devon ki basti se kya' yaad ho aayi.
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत गहरी रचना....बेहतरीन.
ReplyDeleteहमने
ReplyDeleteस्वेच्छा से चुनी है
अवसरों की उसर जमीन
ताकि गुलाब को मिल जाए
हरा-भरा उपजाऊ मैदान,
फिर भी
कहाँ भाए तुम्हें
काँटों के बीच खिलते
"कैक्टस के फूल" ...aaj neenv ka patthar naamak nibandh yaad aa gayaa.aapkii rachna behad achchhi hai
kaktas ke fool ko lekar bahut kuchh byan kar diya aapne..bahut sundar
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, शब्दों के बीच भावनाओं को जिस क्रम में पिरोया है, वह मोहित करता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवक़्त बदलेगा ये उम्मीद ही जीवन को चलने का इंधन है
केक्टस का सारा दर्द अपने शब्दों में पिरोया और भावनाओं से सींचा है अच्छी लगी आपकी ये बहुमूल्य प्रस्तुति
ReplyDeletemaheshwari kaneri to me
ReplyDelete"बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....अभिव्यंजना में आप का स्वागत है.."
बहुत प्रभावी रचना है गुलाब जी ...
ReplyDeleteसच में ऐसे लोग हैं तभी जीवन इतना सुन्दर हो सका है ...
sandhya tiwari to me
ReplyDelete"achhi kavita aur bahut hi acchi sonch."
Bhavpurna abhivyakti ! aabhaar!
ReplyDeleteSuman Patil to me
ReplyDelete"बहुत सुंदर रचना ...."
bahut sundar rachna :)
ReplyDeletebahut kuch Zindagi sa laga ye Cactus ka fool...
ReplyDeletevery very touchy n beautiful poem...
Asha Joglekar to me
ReplyDelete"फिर भी
कहाँ भाए तुम्हें
काँटों के बीच खिलते
"कैक्टस के फूल"
बहुत सुंदर और सार्थक रचना ।
कैक्टस के माध्यम से आपने जीवन के यथार्थ को चित्रित किया है।
ReplyDeletebahut achha likha hai....kalam ki ye taakat aur bhwanaao kee abhiwyaktee kee kabiliyat banee rahe...dua hai hamaree...aapke liye...
ReplyDeleteसार्थक बिम्ब ले कर.......मानव संवेदनाओं को जगाती रचना ....बेहतरीन प्रस्तुति...बहुत खूब
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