बुढ़ापा होता है
पुराने साईकिल की तरह जर्जर,
इसके घिसे-पिटे टायर,
जंग लगे पाइप,
ढीले पड़े नट-वोल्ट,
लटकते पैडल
और गुमसुम पड़ी घंटी,
बहुत मेल खाते हैं
उसके आकर्षणहीन झुर्रीदार चेहरे ,
उसकी लडखडाती चाल से.
दोनों पर पड़ी होती है
समय की मार,
दोनों ही होते हैं
अपनों की उपेक्षा के शिकार,
दूसरों पर निर्भर और लाचार.
जैसे साईकिल को चाहिए
समय-समय पर रंग-रोगन,
अच्छा रख-रखाव,
बुढ़ापा भी चाहता है
अपनों का साथ,
रखना चाहता है
स्वयं को लपेटकर
यादों की रंगीन चादर में,
चाहता है
इसके साये में तय हो जाये
उसके जीवन का सफ़र
चैनो-आराम से.
बुढ़ापा होता है
सड़क के दोनों ओर खड़े
सरकारी पेड़ों सा कृशकाय,
अपने अस्तित्व की लड़ाई
स्वयं ही लड़ता हुआ.
आँधियों की कौन कहे,
तिरस्कार का एक झोंका भी
सहज ही
धराशायी कर जाता है जिसे,
जडें जो नहीं होती है
जमीन की गहराई में.
इसे तो चाहिए
थोड़ी मिटटी सहारे की,
तोडा सा स्नेह जल
सबल और सजल होने के लिए
ताकि अंतिम क्षण तक
सबको दे सके
अपनी बरगदी छाँव.
बुढ़ापा होता है
गुमनामी के गर्त में पड़े
जीर्ण-शीर्ण खँडहर सा
नितांत अकेला,उपेक्षित,
आलिशान अट्टालिकाओं के मध्य
जिसे चाहिए एक पहचान.
इसे देनी होती है
अहमियत
बतलाना होता है
सबको इसका महत्व
समझाना होता है
अपने-आप को
"खँडहर की भी होती है
एक सभ्यता".
सजाना होता है
गौरवशाली इतिहास से
इसका वर्तमान,
सुन्दर बागीचों से
इसका आस-पास.
समझ से परे है यह बात
सदियों से ईश्वर मान
जो पत्थर को भी
देते आये हैं सम्मान,
क्यों करने लगे हैं
अपने ही आनेवाले कल का
पग-पग पर अपमान.
बुढ़ापा तो होता है
ज्ञान का आसमान ओढ़े
समंदर सा विशाल
जिसकी छाती पर
सोता है समय
इतिहास बनकर,
ह्रदय में बसा होता
रिश्तों का संसार
रत्नों का ढेर बनकर.
(आज बड़े-बुजुर्गों की समाज में जो हालत वही इस रचना का प्रेरणा स्रोत है.)
मार्मिक रचना है ... बुढापे का सही चित्र खींचा है आपने ...
ReplyDeleteह्रदय में बसा होता
ReplyDeleteरिश्तों का संसार
रत्नों का ढेर बनकर.
भावमय करते शब्दों के साथ ..सटीक अभिव्यक्ति ।
वाह्…………बहुत ही सुन्दर और सटीक चित्रण किया है………वैसे आज सुबह से शायद बुढापे पर आज ये तीसरी कविता पढी है।
ReplyDeleteमार्मिक रचना है ... बुढापे का सही चित्र खींचा है आपने ...
ReplyDeleteवाह,बहुत सुन्दर,दिल को छू गयी !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
राजीव भैया ........हम सब भी कल...इसी का हिस्सा बन जायेगे
ReplyDeleteअनदेखी का वो पल हम सब भी झेलेगे ...कोई कहें या ना कहें ...
ना चाहते हुए भी हम सब इसी में शामिल भी है
बहुत सटीक रचना है आपकी ......आभार...
बुढ़ापा तो होता है
ReplyDeleteज्ञान काआसमान ओढ़े
समंदर सा विशाल
जिसकी छाती पर
सोता है समय
इतिहास बनकर,
ह्रदय में बसा होता
रिश्तों का संसार
रत्नों का ढेर बनकर...
मार्मिक रचना... बुढापे का सटीक चित्रण है, आपकी रचना में...
बुढापे का..बहुत ही सुन्दर और सटीक चित्रण किया है…
ReplyDeleteबुढ़ापा तो होता है
ReplyDeleteज्ञान काआसमान ओढ़े
समंदर सा विशाल
जिसकी छाती पर
सोता है समय
इतिहास बनकर,
ह्रदय में बसा होता
रिश्तों का संसार
रत्नों का ढेर बनकर.
यही तो समझने की बात है...
सुंदर...
"जैसे साईकिल को चाहिए
ReplyDeleteसमय-समय पर रंग-रोगन,
अच्छा रख-रखाव,
बुढ़ापा भी चाहता है
अपनों का साथ"
रेखांकित करने के लिए बहुत कुछ है इस रचना में.
बधाई एवं साधुवाद
जीवन के अंतिम पड़ाव का सही विश्लेष्ण किया है आपने ....हमें बुजुर्गों को पूरा सम्मान देना चाहिए
ReplyDeleteयथार्थ चित्रित करता उम्दा वर्णन...बढ़िया रचना.
ReplyDeleteएक कडवी सचाई से रू-ब-रू कराती कविता!! यथार्थ को चित्रित करती हुई!!
ReplyDeleteअनुभव से बड़ी कोई उत्पादकता नहीं।
ReplyDeleteबहुत यथार्थपरक और सामयिक चित्रण !अच्छा लिखते हैं,संवेदनात्मक प्रस्तुति !
ReplyDeleteLoksangharsh patrika to me
ReplyDeletenice
sunil gajjani to me
ReplyDeleteबुढ़ापा तो होता है
ज्ञान काआसमान ओढ़े
समंदर सा विशाल
जिसकी छाती पर
सोता है समय
इन सुंदर पंक्तियों के साथ आप को नमस्कार !
आप ने सायकिल को प्रतीक बना बुढापे को, खंडहार , सड़क किनारे लगे सरकारी पेड़ , नयी उपमाये प्रदान कि है . अच्छा सम्प्रेषण . अच्छी अभ्व्यक्ति , बधाई साधुवाद .
सादर
Bhawna Kunwar to me
ReplyDeleteEakdam sateek rachna sachaai se otprot....
shyamal suman to me
ReplyDeleteबुढ़ापे की तुलना पुरानी साईकिल से - यह अंदाज़ पसंद आया.
tulna achhi ki hai..budhape ki sahi tasvir khinchi hai..
ReplyDeleteSHYAM SUNDAR MITRA to me
ReplyDeleteR/Sir,
That's like my sir. Really the write up of Urs is very appt to our future. As we all be growing old some day or other.
मार्मिक रचना ... बुढापे का सही चित्र खींचा है आपने ...धन्यवाद..
ReplyDeletewaah... bahut sahee aur sateek chitran kar diya aapne... aur vivechna bhee gazab kee...
ReplyDeleteitna badhiya comparison... aur budhape ki zarooraton ko darshaya hai aapne... waah...
bahut achhi rachna ..sach dikhlati hui
ReplyDeleteNirmla Kapila to me
ReplyDeleteबिलकुल सही चित्रण किया है आपने बुढापे का। खास कर ये पँक्तियाँ
"बुढ़ापा होता है
गुमनामी के गर्त में पड़े
जीर्ण-शीर्ण खँडहर सा
नितांत अकेला,उपेक्षित,
आलिशान अट्टालिकाओं के मध्य
जिसे चाहिए एक पहचान."
बेहतरीन रचना के लिये धन्यवाद।
subir rawat to me
ReplyDeleteहकीकत बयां करती बुढ़ापे पे एक अच्छी कविता. आभार .
मेरा ब्लॉग है - http;//baramasa98.blogspot.com
Ranjana to me
ReplyDeleteयह भी जो मन को न छुए,तो मनुष्य होने पर धिक्कार है....
इतने सार्थक और प्रभावशाली ढंग से विषय को रखने और संवेदनाओं को झंकृत करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका...
सादर,
रंजना.
मार्मिक रचना है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteबुढापा होता है बर्फ से ठंढा
It's very heart touching . This is a topic which always pains me deep in my heart . Very beautifully handled by you . Wish all of us understand this truth . Beautiful , beautiful poem!!
ReplyDeleteMy good wishes for you and your writing Rajiv ji .