Thursday, July 11, 2024

 

 शब्द-चित्र

प्रिय श्रेष्ठा ,

मेरी बात सुनो,

ध्यान से सुनो मेरी बात।

 

मैं एक चित्र बनाना चाहता हूँ,

तुम्हारा शब्द-चित्र,

उकेरना चाहता हूँ

कैनवास पर

तुम्हारे व्यक्तित्व का हर पहलू 

पिकासो या माइकल एंजेलो की तरह

अपने शब्दों के रंग में।

 

तुम्हारे नम दमकते चेहरे पर

तुम्हारी नील-नीली आंखों की खूबसूरती,

लंबे घने रेशमी बालों की चमक

शिफॉन में लिपटी आकर्षक कंचन काया 

और तुम्हारी सर्पीली चाल,

चाँद को मुंह फेरने को मजबूर करती  

तुम्हारे चेहरे पर फैली 

मंद-मंद मुस्कान।

 

 

इतना ही नहीं

ख़ुशी और जोश से भरा

स्नेह और सम्मान से पूर्ण

स्त्री प्रेम की आभा से दमकते

तुम्हारे अस्तित्व पर

न्योछावर करना चाहता हूं

आपने कुछ भाव-भीने पल

 

तुम्हारा मातृत्व

अलगाव की कोई रेखा खींचे बिना

क्षितिज तक फैला हुआ है

सबको साथ लिए

 

मैं सीखना चाहूंगा तुमसे

बोझिल शाम को भुलाकर

सबके लिए अच्छा सोचने

और  

उलझी हुई गांठों को सुलझाने का हुनर।

 

(राजीव (29/09/2022)

 

 

 

 

 

ALPHABETIC PORTRAIT OF MY LADY LOVE

Dear Shreshtha,

Listen to me,

Listen to me carefully.

 

Today I'm going to make a portrait,

A portrait of you,

Just an alphabetic portrait

Where like Picasso

Or Michael Angelo

I could paint your person

In my colour of words.

 

Even the beauty of your eyes

On your moist gleaming face,

Grace of long and dark silky hair

With their serpentine moves,

Curvy classic body

Wrapped in sensuous chiffon,

The white glittering smile

And the graceful move.

 

Not only that

I would like to sprinkle on it

Some of your grand bygone days or years

Full of jest , full of vigour

Filled with aura of feminine love,

Affection and respect for all.

 

It would be worth mentioning

Your becoming a mother,

Mother of two baby boys,

However, your motherhood spread to the horizon

And stood for all

Without making a line of separation.

Whether staying far near or far.

 

I do venture into a tide

Of your wavy love

Countering the conducive pressure

Of each fluffy wave,

Embracing each of them with soft touch

Entering into the initial depth of core

Full of soft shiny grains of touch.

 

I would like to unfold

Your skills to untie the entangled nots

Making fresh breathing space for all,

Your ways to turn agonies into beautiful treat

By convincing the atmosphere of gloom to sunrise

Making your dynamic presence felt.

 

(RAJIV (29/09/2022)

 

बरसात

रिम-झिम,रिम-झिम बरसा पानी

घर पर आज नहीं है नानी.

चलो गली में धूम मचाएं

वर्षाजल में खूब नहाएं

घर से कुछ कागज ले आयें

कागज लाकर नाव बनाएं

नाव को लेकर गली में आयें,

बहते जल में उसे बहाएं,

नाव चलाएँ , नाव चलाएँ,

उसके पीछे दौड़ लगाएं

उछल-उछलकर धूम मचाएँ

औरों को भी पास बुलाएं.

राजीव(11/07/2024)