सागर से सागर तक
तट से टकरा कर
लौटते हुए
खुद में समा रही हैं
क्षितिज के पार तक
विस्तार पा रही हैं
जीवन-सच बता रही है.
सूरज की किरणे
सागर जगा रही है,
बादल बना रही हैं,
धरती इशारे से
उन्हें
अपने घर
बुला रही है,
हरियाली का सबब
बन जाने को
उकसा रही है.
बादल गरज रहे हैं,
बिजली चमक रही है,
बरसात आ रही है,
रिमझिम के तराने,
जीवन-गीत गा रही है,
फैला रही है
उम्मीद का उजाला,
हर दिल में
तमन्नाएं जगा रही है.
बाधाओं को पार कर
जल की धाराएं
नदियों का रूप ले
अविरल
बही जा रही है
अपने ईष्ट की ओर
बढ़ी जा रही हैं.
एकबार फिर
तेरी लहरों में समाकर
एकाकार होने जा रही हैं
एकबार फिर
लहरें हुंकार भरेंगी,
तट से लौटकर
अनंत में खो जायेंगी.
चलता रहेगा सदा
यह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.