बाढ़
उमड़ते–घुमड़ते,
घने काले मेघों के नीचे खड़ा मैं
खुश नहीं हूँ,
आहत हूँ।
चारों तरफ बारिश ही बारिश,
घर–घरारी,खेत-खलिहान
हर तरफ पानी ही पानी देखा है,
डूबती-उतराती जिन्दगी का ढेर देखा
है।
देखी है लोगों की परेशानी,
उनकी विवशता,
तुम्हारा आतंक देखा है
और देखा है तुम्हारा कहर।
तुम्हारी बहाव में हजारों घरों को
टूटते,
हजारों सपनों को बिखरते देखा है,
देखा है करीब से
कैसे टूटती है उम्मीदों की डोर
बांधों के टूटने से
कैसे ढेर हो जाते हैं अरमान ।
गाँव,कस्बा या शहर ही
नहीं
बहा ले जाते हो
हमारी आस्था
हमारा विश्वास भी
बड़ी मुश्किल से जिन्हें बसा पाए
थे हम।
तुम्हें सुरसा की तरह
हमारे पैरों तले की जमीन,
हमारा आशियाना,
हमारा आसरा
पलभर में सबकुछ निगलते देखा है।
लोगों ने बड़ी मुश्किल से बनायी
थी
रिश्तों की टूटी सड़क,
पाटकर दूरियां बनाए थे पुल।
मिलने का सिलसिला शुरु होता
उससे पहले तुम्हारी मौजें बहा ले
गयीं
सड़क और पुल
उससे जुड़े सारे रास्ते,
कर दिया एक बार फिर
सबको एक-दूसरे से अलग,
मोहताज कर दिया औरों के सहारे
का
लगा दिया हमारे अस्तित्व पर ही
प्रश्न चिह्न ?
तुम्हारा कहर
सुनामी,सूखे और भूकंप से
बढ़कर है
तुम
जो कभी हुआ करते थे वरदान
हमारे लिए,
आज अभिशाप बन गए।
लेकिन आज मेरा एक वादा है तुमसे
डिगा नहीं पाओगे
जीवन के प्रति हमारा विश्वास,
मिटा नहीं पाओगे हमारी जीजीविषा,
मोड़कर पाँचों उंगलियां
मुट्ठी बनाएंगे,
तेरी उफनती धार पर
नाव और पतवार ले चढ़ जाएंगे।
मिटने नहीं देंगे अपनी हस्ती,
तुम्हारे हर कहर से टकराएंगे,
फिर से जोड़ेंगे तिनका-तिनका
अपना नया आशियाना बनाएंगे।
डालेंगे सृजन के बीज,
इंतजार करेंगे उम्मीद की किरणों
संग
उनके उग आने का
जो देंगी हौसला तुमसे टकराने का,
एक जज्बा
जिंदगी से दो-चार हो जाने का ।
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