मैंने
देखा है उसे
मैंने देखा है उसे
एक छोटा सा छप्पर डाल
रहते हुए पड़ौस में
पति के साथ
करते हुए सीवर खुदाई का काम
बच्चे को बिठा देती थी
मिट्टी के ढेर पर
उसकी ऊर्जा का स्रोत
शायक उसके पति का उसके लिए प्रेम
है
या फिर बच्चे के लिए उसका
ममत्व
छत्तीसगढ़ में छोड़कर
प्यारा अपना गाँव
शहर आयी है
पूरी श्रद्धा और लगन से करती
है
अपना काम
अपने चेहरे पर मोतियों सी चमकती
पसीने की बूँदों से लिखती रही
विकास की इबारत
बनकर सृजन-हार
भूल जाती वो अपनी सारी थकान
आ बैठता जब उसका बेटा उसकी गोद
में
बड़े प्यार से
आँचल की छांव में उसे दूध पिलाती
मन ही मन गुनगुनाती
फिर खो जाती सपनों के संसार में
जहां न फावड़ा होता
न कस्सी
ना ही उसकी मेहनत से बना मिट्टी
का ढेर
जिस पर बैठकर
उसका नन्हा कान्हा
मारता था किलकारियां
वह भी काट रही है वनवास
पर खुश है
उसका पति, उसका बच्चा है
हर पल उसके साथ
नहीं चाहिए उसे कुछ और
दोनों जहान की खुशियां हैं उसके
पास
कपड़ों में है पैबंद कोई बात नहीं
मन में नहीं है कोई बात
मड़ैया में भी मिलता है उसे
महला का सुख
क्योंकि अपने हैं उसके साथ ।
सच जब अपनों का साथ होता है तो दुनिया अपनी मुट्ठी में बंद नज़र आती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अपनों के साथ में अपनी खुशी ढूँढ ली फिर तो वनवास भी कट ही जायेगा... बहुत ही भावपूर्ण सृजन।
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