Friday, April 30, 2010

वहम

नवजात
शिशु सा
खेला
तुम्हारी गोद में ,
तुम्हारी ऊँगली पकड़
पला-बढ़ा।
देखते ही देखते
तुम्हारी नजरों के सामने
हो गया बड़ा ।
पर, रुका नहीं
हमारी तरह ,
बढ़ता ही रहा,
बढ़ता ही रहा ,
और
विकराल हो गया ।
अब यह
हर रोज
डराएगा तुम्हें ,
तुम्हारे रातों की
नींद उड़ाएगा ,
छीन लेगा
दिन का चैन
क्योंकि
यह वहम है
तुमने ही पाल-पोस कर
बड़ा किया है
जिसे ।






3 comments:

  1. "क्योंकि
    यह वहम है
    तुमने ही पाल-पोस कर
    बड़ा किया है
    जिसे ।"
    bahut umda rachna... prabhavit karti hai... sochne ko baadhya karti hai

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  2. antayant prabhavi bimbon ki safal kavita.

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