चाँद-सितारों तक
सिमटकर रह जाती थी
मेरी बात।
मुझे तो चाहिए था ,
बस तुम्हारा साथ ।
तमन्ना थी
तुम रहो पास
पल-दो-पल,
यादों में समेटकर
रख लूं तुम्हें ,
आँखों में बसा लूं
तेरी तस्वीर,
उसके सहारे ही
कट जायेंगे
मेरे दिन और रात ।
चाँद-सितारों तक
सिमटकर रह जाती है
मेरी बात।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteयादों में समेटकर
ReplyDeleteरख लूं तुम्हें ,
आँखों में बसा लूं
तेरी तस्वीर,......
Sachche prem ki prakashtha........ bhavpurn rachna...
anupam rachna
ReplyDeleteपाठकों,
ReplyDeleteरचनाकार ई पत्रिका में मेरा हास्य-नाटक "यह चांडाल-चौकड़ी, बड़ी अलाम है" के खंड १ से १४ प्रकाशित हो चुके हैं ! इस वक़्त अंतिम खंड १५ तैयार होने जा रहा है ! आप जानते ही हैं, "अलाम" शब्द का मफ़हूम क्या है ! आप इन खण्डों को दत्तचित होकर पढ़िए, और बताएं कि, इस नाटक के किरदार वास्तव में "अलाम" है या नहीं ? यह फैंसला आपका है ! इन खण्डों को पढ़ते-पढ़ते आपको इन किरदारों की गतिविधियों पर हंसी आयी या नहीं ? कृपया, आप इन खण्डों को पढ़कर अपनी राय प्रस्तुत करें और कोई खामियां नज़र आ जाए तो उन खामियों को मुझे बताएं !
आपके खतों की इन्तिज़ार में
दिनेश चन्द्र पुरोहित ई मेल dineshchandrapurohit2@gmail.com