सुबह-सबेरे मम्मी आती,
मम्मी आती, मुझे जगाती।
जब न उठता आँख दिखाती ,
आँख दिखाकर डांट पिलाती।
झुंझलाकर वह वापस जाती , ,
पापा को संग लेकर आती।
पापा आते, मुझे जगाते
इधर-उधर मैं करवट लेता,
ऊ-ऊं करता फिर सो जाता ,
पापा फिर भी प्यार जताते।
मेरी हरकत न सह पाती ,
मम्मी गुस्से से भर जाती ,
फिर वो कहती-"मार पड़ेगी"
पापा कहते-"क्योंकर भाई" ।
राजा बेटा अभी उठेगा,
उठकर के स्कूल चलेगा,
पढ़-लिख कर कुछ बड़ा बनेगा ।
पड़ा-पड़ा मैं सुनता रहता,
पर उठने का नाम न लेता,
तब मम्मी भीतर से आती ,
मुझको अपने गोद उठाती ,
ब्रुश करवाती,
ब्रुश करवाती, फिर नहलाती,
बातें कह- कहकर बहलाती ।
मैं तो उनकी एक न सुनता,
रोता जाता और चिल्लाता,
और कहो मैं क्या कर पता ?
रो-रो कर मैं ड्रेस पहनता,
अपने मोज़े - शूज पहनता।
पापा आते, गोद उठाते ,
गोद में लेकर बस तक जाते,
बस कंडक्टर नीचे आता ,
हाथ पकड़ अंदर ले जाता,
पापा वापस घर को जाते ,
मैं गुम-सुम स्कूल को जाता।
वहां पहुँच मैं खुश हो जाता,
दौड़-दौड़ कर उधम मचाता ,
टीचर मैडम बाहर आती ,
हंसकर मुझको डांट पिलाती ,
कक्षा में वापस ले जाती ,
टाफी -चाकलेट खूब खिलाती ,
अच्छे -अच्छे गीत सुनाती ,
डेढ़ बजे जब छुट्टी होती ,
दौड़ सभी बस में चढ़ जाते ,
बस जब मेरे स्टैंड पर आती ,
धमा -चौकड़ी सी मच जाती ,
कूद-कूद हम नीचे आते ,
नीचे आकर दौड़ लगाते ।
मम्मी फिरसे आँख दिखाती ,
आँख दिखाती, डांट पिलाती ,
फिर जल्दी से गोद उठाती ,
चूम-चूम कर खुश हो जाती ।
ख़ुशी-ख़ुशी घर को ले आती ,
लड्डू- पेड़े मुझे मुझे खिलाती ,
बस्ता लेकर संग बिठाती ,
खुद पढ़-पढ़कर मुझे पढ़ाती ,
होमवर्क सारा करवाती ।
सूरज जब छिपने को आता ,
चुपके से मैं बाहर आता ,
बच्चों के संग रेस लगाता ।
खेल-खेलकर जब थक जाता ,
मैं घर जाता और सो जाता,
मीठे सपनों में खो जाता।
आपने तो बचपन के दिनों को पुनः जीवन्त कर दिया
ReplyDeleteराजीव जी आप कि मैंने पचासों कविता पढ़ी है... सैकड़ो कविता आपने लिखी होंगी... लेकिन आपकी अब तक कि सबसे शसक्त रचना है यह... ये कविता ना केवल बच्चों के लिए माकूल है बल्कि नए परेंट्स को गुगुदाएगी... पुराने परेंट्स की यादे ताजा कर देंगी... कविता परेंतिंग के दौरान माँ और बाप के बीच के अंतर को बहुत सहजता से स्पस्ट करती है...
ReplyDeleteजहाँ आज नुक्लेअर फॅमिली में बच्चो कि परवरिश के बीच माता पिता के संतुलन कि व्याख्या भी करती है कविता...
भाषा सहज और सरल है.. फ़िल्मी गीतों कि तरह... अंतिम पंकित "और मीठे सपनो में खो जाता" बच्चे के इक दिन के चक्र को बेहतरीन ढंग से पूरा करती है... सुंदर रचना...
ये कविता आपको बहुत प्रसिध्ही दिलाएगी...
bahut hi chunmun si pyaaree rachna
ReplyDelete"Chhoti see masti" pure jiwan ka saar hai. hamare jiwan ki swarnim avadhi hamara bachpan hi hai. bahut hi komal rachna..........
ReplyDeleteBal sahitya me kuch karane ke liye space ka abhav nahi hai.Aur apki yeh rachana us khali space ko bharana shuru karti hai. Ise vyapak falak dijiye. Hindi bal shitya labhanwit hoga.
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