जब
मस्जिदों में होती
पहली अजान
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब वातावरण में
मंदिर के घंटे का स्वर
होता गुंजायमान
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब सुनाई देती
कोयल कि कूक
पक्षियों के कलरव के बीच
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब कानों तक आती
मां की
ममता-भरी आवाज
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
कुछ पल बाद जब गालों पर होता
पापा के स्नेहिल हाथों का स्पर्श
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब रसोई से आने लगती
बर्तनों के खड़कने की आवाज
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब पूरब हो जाता सिन्दूरी लाल
और धरती पर फैलने लगता प्रकाश
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
जब कानों तक आती
ReplyDeleteमां की
ममता-भरी आवाज
और गालों पर होता
पापा के स्नेहिल हाथों का स्पर्श
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
behad samvedansheel kavita... bahut umda chitran...
क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
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