लेकिन जीवन के रंग अनेक ।
कहीं भूख से बिलबिलाता बचपन ,
प्यास से तड़पते लोग
तो कहीं स्विमिंग पूल में नहाते ,
जश्न मनाते, इतराते लोग।
कहीं दर्द एक लम्बी दास्तान,
मुसीबत सामने खड़ी सीना तान ,
वहीँ दूसरी ओर
बियर में डूबते-उतराते,
पार्टियों में मौज मनाते लोग ।
कहीं अफ्रीका का इथियोपिया ,
कहीं एशिया , कहीं यूरोप ।
कहीं जीवन रोग ,
कहीं जीवन भोग ।
कहीं भूख से उबलकर बाहर आती आँखे,
कातर नजरों में उम्मीद लिए लोग ,
वहीँ समंदर पर दौड़ लगाते,
सूरज में नहाते लोग ।
कहीं हाथों में कटोरा लिए लोगों की लम्बी कतार,
कही खानेवाला नदारत ,
गोदामों में सड़ता अन्न का भंडार।
कहीं भीख मांगकर गुजारा करते लोग,
कहीं भीख देकर इतराते लोग,
कहीं पोषण अपार ,
कहीं कुपोषण की भरमार ।
कहीं चूल्हे के पास सिमटा
पूरा परिवार ,
कहीं किचेन फाईव स्टार।
कहीं भूकंप,भुखमरी ,बेकारी ,
कहीं सरेआम अन्न की कालाबाजारी,
कहीं मांस का ढेर लगता शरीर ,
कहीं हड्डियों के ढांचे पर टिका शरीर ।
कही टुकड़ों पर पलता बचपन,
कहीं टुकड़ों पर लेटा बचपन,
कहीं फाईव स्टार स्कूल जाता बचपन ,
कहीं स्कूल के ख्वाब सजाता बचपन।
कहीं गरीबी ढोती अपना नंगा बदन ,
कहीं अमीरी नाचती नंगा नाच ,
हमाम में सब नंगे हैं ,सच है ,
बस कारण अलग-अलग हैं ।
कहीं गरीबी में फटा कपड़ा ,
कहीं फैशन में घटा कपड़ा।
कहीं झोपड़ों में दिन काटते लोग ,
कहीं महलों की शोभा बढ़ाते लोग ।
कहीं गोद उठाते लोग
कहीं गोद उजाड़ते लोग ।
कैसी है ये दुनियां !
शायद ऐसी ही है दुनियां।
दुनिया के विविध रंगों का बहुत उम्दा संयोजन... दुनिया में जहाँ इक ओर सम्पूर्णता है वही दूसरी ओर विपन्नता है... दोनों ध्रुवों का आकलन इस से और भी प्रभावशाली बन सकता था यदि थोडा और कसते.. वैसे कुछ पक्तिया और तुलना अछे बन पड़े हैं... यथा :
ReplyDelete"कहीं चूल्हे के पास सिमटा
पूरा परिवार ,
कहीं किचेन फाईव स्टार। "
या फिर
"प्यास से तड़पते लोग
तो कहीं स्विमिंग पूल में नहाते ,
जश्न मनाते, इतराते लोग।"
समाजवादी कविता... बधाई
ये विरोधाभास कम करना है प्रत्येक हिन्दुस्तनी की जिम्मेदारी होनी चाहिए ,कविता जो कहना चाहती वो बखूबी कह रही है ,बधाई
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