Tuesday, October 27, 2020

 बस अब और नहीं.......

वर्षों तुमने  खून किया

हमारे भरोसे का ,

बुद्ध और गांधी की धरती को

बेवजह रक्त-रंजित करते रहे।


बहुत हो लिया विस्तारवाद का खेल,

अब और नहीं.........  

आज के बाद 

हम कबूतर नहीं उड़ाऐंगे,

बाज उड़ाऐंगे,बाज

जिसमें धमक होगी

धमनियों में बहते गर्म लहू की,

परवाज़ में जिसके होगी

बिजलियों की कड़क,

प्रतिरोध में ताकत चट्टानों की।


दबाव और आतंक के साये में 

अमन की बात नहीं दोहराएंगे।

 

अब हम केवल प्रतिकार नहीं करेंगे,

प्रतिशोध लेंगे, प्रतिशोध,

फिंगर और टॉप पर सवार होकर

बज्र से भी कठोर आघात करेंगे,

अब चैन से नहीं बैठेंगे

प्रतिघात करेंगे, भीषण प्रतिघात।


धरती की क्या करते हो बात

समंदर की तूफानी लहरों पर भी

दौड़ लगाएंगे, दौड़।

ढूँढेंगे हर तरह के जहरीले तीर,

तुम्हारे लिए

अपने तरकश में उसे सजाएँगे।

 

बहुत कर लिया इलाज

तुम्हारे दिये जख्मों का,

बहुत सह लिया दर्द,

अब मरहम नहीं लगाएंगे,

अपने घावों को नहीं सहलाएंगे,

सूखते घावों खुरच-खुरचकर

फिरसे हरा बनाएँगे।


सूखने नहीं देंगे अपने आंसुओं को

ज्वालामुखी का धधकता लावा बनाएँगे,

किनारा तोड़ बहा ले जाने को आतुर

उफनती नदी की

विध्वंसक धार बनाएँगे।

 

अपने घरों की दीवारों पर सजाएँगे  

खून से लथ-पथ शहीदों की तस्वीर

उनकी गर्जनाओं को

अपने कानों में बसाएँगे।

जितने हमने अपने खोये,

जितने हमने आंसु रोये

उनको हर-पल रखेंगे याद।

अब मोमबत्ती नहीं

मशाल जलाएंगे

शिव के धरा-धाम कैलाश में

डमरू की आवाज पर

तांडव मचाएंगे,तांडव।

 

अब नहीं होगी गांधी-नेहरू की बात,

ना ही भेजी जाएगी पंचशीली सौगात,

अतीत अब हावी नहीं हो पाएगा

हमारे वर्तमान पर।


बेशक आगाज किया है तुमने

अंजाम तक इसे हम ले जाएंगे,

बहुत हो गया सब्र का इम्तिहान,

तोड़ डालेंगे 

तुम्हारे बनाए सारे बाँध        

तुमको भी बहा ले जाएंगे।

 

अब तो हमारा पथ होगा अग्नि-पथ 

और हम उसके पथिक बन जाएंगे,

हिंसा को ही बनाएँगे अहिंसा का हथियार 

अब तो बस प्रहार करेंगे,प्रहार।

       

राजीव(01/09/2020)


MUCH WATER HAS FLOWN NOW

 

Hear it loud and clear:

Enough is enough.

Now there in no chance of change

In your foxy attitude,

Your deceitful and purposive aggression.

You are the reason

Of the nasty bloodshed

On the land of Buddha and Gandhi.


But listen carefully,

Now we will not walk with the lambs

In the soft grassy land,

We’ll prefer to sit

On the back of a slouching tigress

With armours and arms

Of our choice.

 

His roar would be thunderous

Full of fury and fire,

And reaction would be lightening fast.

We’ll not fly pigeons now

When terrible smoke of aggression

Is all around.

 

We’ll fight,

Fight to the end

With the rocky will.

What to talk of land,

We’ll conquer the seas

And penetrate the limits of sky,

Take our revenge to the next level.

Hitting them hammer hard.

 

We have applied

Many layers of treatment

To our wounds

That you gave time and again.

But from now on

We’ll not use any ointment,

Nor would like to nurture them gently.

We’ll keep scratching

The healing wounds

To the level of burning pain,

And make them remind

Of what we were afflicted upon

And what we are going through

Even today.

 

We’ll not let our mind forget

Those painful tears,

We’ll permit ourselves to turn

Into a red hot volcanic blow

And burn down enemy camps.

 

We’ll hang the pictures

Of our martyrs on every wall,

We’ll save their gallant roars

In the air, water and land,

And count

Every casualties we suffered,

Tricolor wrapped every coffins,

The pain and pangs

Of the families and friends.

But now on

We’ll not take out a candle march,

And we’ll not lament our past.

We’ll move with a torch

To light/lit-up our spirit

 

Now there won’t be Gandhi’s “Non-violence’’,

Nor would be Nehru’s ‘’Panchsheel’’.

Aggression will be the seed of success.

We will slouch towards enemy

And pounce upon every moment.

 

No doubt,

You have grossly misadventured then,

You have grossly misadventured now.

But be ready to face

Our well orchestrated

Music of adventure.

 

You have earlier tested

Our Himalayan resolve,

Now you will taste

Our calamitous wrath,

Or bear the avalanche

Of impatience

Sweeping you down

To nowhere.

Now we are on the path of fire

Violence is the weapon of peace.


Thursday, October 22, 2020

   बाढ़

उमड़ते–घुमड़ते,

घने काले मेघों के नीचे

खड़ा मैं 

खुश नहीं हूँ,

आहत हूँ। 


चारों तरफ बारिश ही बारिश,

घर–घरारी,

खेत-खलिहान

हर तरफ

पानी ही पानी देखा है। 

डूबती-उतराती

जिन्दगी का ढेर देखा है

देखी है उनकी परेशानी,

उनकी विवशता।

 

तुम्हारा आतंक देखा है

और देखा है

तुम्हारा कहर 

तुम्हारी धार में

हजारों घरों को टूटते,

हजारों सपनों को बिखरते देखा है।

 

देखा है बेहद करीब से

उम्मीदों की टूटती डोर,

बांधों के टूटने से

ढेर होते अरमानों को देखा है।

 

तुम बड़े बेरहम हो,

गाँव,कस्बा,शहर ही नहीं 

बहा ले जाते हो

हमारी आस्था,

हमारा विश्वास

जिन्हें बड़ी मुश्किल से,

बना पाये थे,  

बसा पाए थे हम

अपने भीतर ।

 

तुम्हें सुरसा की तरह

पलभर में

सबकुछ निगलते देखा है

हमारे पैरों तले की जमीन,

हमारा आशियाना,

हमारा आसरा,

हमारा सहारा,सबकुछ ।

 

बड़ी मुश्किल से बनायी थी

हमने ने टूटे रिश्तों की सड़क

पाटकर दूरियां

बनाए थे पुल

मिलने का सिलसिला शुरु होता

उससे पहले

तुम्हारी मौजें बहा ले गयीं 

सड़क और पुल

और उससे जुड़े सारे रास्ते,

कर दिया एक बार फिर

सबको

एक-दूसरे से अलग

मोहताज कर दिया

औरों के सहारे का

लगा दिया

हमारे अस्तित्व पर ही

प्रश्न चिह्न।

 

तुम्हारा सालाना कहर

सुनामी,सूखे

और भूकंप से भयंकर है।

 

तुम जो कभी हुआ करते थे

वरदान हमारे लिए

आज अभिशाप बन गए

 

लेकिन आज

मेरा एक वादा है तुमसे,

डिगा नहीं पाओगे

जीवन के प्रति

हमारा विश्वास

मिटा नहीं पाओगे

हमारी जीजीविषा 

मोड़कर पाँचों उंगलियां

मुट्ठी बनाएंगे

तेरी उफनती धार पर

चढ़ जाएंगे

नाव और पतवार ले।

 

अपनी हस्ती

मिटने नहीं देंगे

टकराएंगे

तुम्हारे हर कहर से

फिर से जोड़ेंगे

तिनका-तिनका

फिर से अपना

नया आशियाना बनाएंगे।

 

डालेंगे सृजन के बीज,

इंतजार करेंगे

उम्मीद की किरणों संग

उनके उग आने का

जो देंगी हौसला

तुमसे टकराने का

एक जज्बा

जिंदगी से

दो-चार हो जाने का ।


 

   गोद का अहसास तो दो

     

      हमने सदा ही रखा  

      तुम्हारा बचपन अपनी गोद में

      मन बहुत हुलसाया  

      जब तुम घुटनों के बल चले,  

जब तुम अपने पैरों पर खड़े हुए,  

चलने में लड़खड़ाए तो हमने

अपनी उंगलियों का सहारा दिया  

फिर लाकर दी

लकड़ी की एक तिपहिया गाड़ी।

  

जब-जब तुम गिरे,

चोटिल हुए,  

तुम्हें गोद में उठाया  

अपने कलेजे से लगाया,  

तुम्हारे घुटने की चोटों को सहलाया,  

मंत्रमुग्ध हो निहारते रहे

तुम्हारी बाल-शुलभ हरकतें।

 

इन आँखों ने भी पाली हैं  

तुमसे उम्मीद  

बड़े होकर

हमारा सहारा बनने की।

  

बस इतनी सी इच्छा है

जब हमें तुम्हारी जरूरत हो

सहारा देना

अपने मजबूत कंधों का।

  

जानता हूँ बहुत व्यस्त है

जिन्दगी तेरी,  

आपा-धापी में कटता है

हर दिन तुम्हारा।

  

समय का मारा,

सहारा ढूँढ रहा मैं,  

आस लगाए हूं

अपनों से  

एक अदद कंधे की।

 

दूर रहते हो रहो  

पर हो सके तो

अपने पास होने का अहसास तो दो ।

   

जानता हूँ नहीं दे पाओगे गोद मुझे

पर, बस एक बार,सिर्फ एकबार  

मुझे गोद का अहसास तो दो ।

 (29/08/2020)