Friday, March 12, 2010

आओ बच्चों कुछ कर जायें

जंगल सारे उजड़ रहे हैं
पर्वत सारे बिखर रहे हैं
सूख रहे हैं निर्झर सारे
धरती का सीना है छलनी
इस धरती की जान बचाएं
आओ बच्चों कुछ कर जायें

चलो आज से पेड़ लगायें
चहुँ ओर हरियाली लायें
जामुन, नीम और आम लगायें
जेठ माह सावन बन जाए
आओ बच्चों कुछ कर जायें

इतने पेड़ लगाएं हम सब
जंगल में भी होगा मंगल
भालू, चीते, शेर भी होंगे
बस उनकी तस्वीर ना लायें ।
आओ बच्चों कुछ कर जायें ।

बाग़ बगीचे अब लहरायें
फूलों से बचपन भर जाये
आने वाला कल का सूरज
और अधिक रोशन हो जाये ।
आओ बच्चों कुछ कर जायें

गावों में भी अलख जगाएं
खेतो में फसले लहराए
बादल को संदेशा भेजें
गागर में सागर भर लाये ।
झमझम कर बरसे आँगन में
धरा धाम को तर कर जाये ।
आओ बच्चों कुछ कर जायें

स्वच्छ रहें और स्वच्छ बनायें
कचरों को अब ना फैलाएं
नालों की हम करें सफाई
नदियाँ भी जीवन पा जाएँ
जीवन में खुशहाली छाये
आओ बच्चों कुछ कर जायें





3 comments:

  1. आओ बच्चों कुछ कर जायें... kai saari kavitaye , kai sare jwalant mudde ..... kai saare chintniya vishay ek kavita mein prastut kar diye hai. inko aage badhaye aur pura ek sanklan nikale.

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  2. global warming ke yug mein paryavaran ke prati aapki jagrukta wakai kabile taarif hai. Bachhon ke jaban par chad jaayegi ye kavita aur unko raah dikhayegi. Sunder Rachna...

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  3. bahut badiya, bachho ke liye prernapurn !

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