Friday, April 23, 2010

कैसी कविता लिखूं आज मैं

मैं रांझे की हीर लिखूं
या सीरी का फरहाद लिखूं,
या फिर जाकर ताजमहल में,
शाहजहाँ का प्यार लिखूं ,
कैसी कविता लिखूं आज मैं ।

आज चांदनी रात लिखूं
या तारों की बारात लिखूं ,
कल-कल बहती नदी लिखूं
या हरियाली की बात लिखूं,
कैसी कविता लिखूं आज मैं

मीठे से कुछ बोल लिखूं
या फिर जीवन अनमोल लिखूं ,
पल-भर की बरसात लिखूं
या जलते जेठ की बात लिखूं ,
कैसी कविता लिखूं आज मैं।

जीवन के कुछ पन्ने पलटूं
या जीवन के साथ चलूँ ,
या फिर ले लूँ कलम हाथ में
पीछे (बचपन) की कुछ बात लिखूं ,
कैसी कविता लिखूं आज मैं ।

मुंबई का इतिहास लिखूं
या फिर समुद्र की बात लिखूं ,
या फिर तट पर खड़े-खड़े
सूरज का अवसान लिखूं ,
कैसी कविता लिखूं आज मैं ।

जन-जन की मैं बात लिखूं
या दहशतगर्दी की बात लिखूं ,
या फिर उनकी बात लिखूं
जो हमसब की हैं जान बचाते,
कैसी कविता लिखूं आज मैं ।


2 comments:

  1. जन-जन की मैं बात लिखूं
    या दहशतगर्दी की बात लिखूं ,
    या फिर उनकी बात लिखूं
    जो हमसब की हैं जान बचाते,
    कैसी कविता लिखूं आज मैं ।
    ... rajiv ji aaj aapne sampurn rachnadharmita par ek prashnachinh laga diya hai... bahut sunder rachna...

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  2. कैसी कविता लिखूं आज मैं ।
    kavi ke man ka dwand jahir hota hai jo ki kuch bhi likhne se pahle har lekhak ya kavi ke man mein uthta hai.... achchhi prastuti.......

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