Friday, April 16, 2010

शब्द

शब्द
शरीर ,
भाव
उसका मनप्राण ।

शब्द
समेट लेते हैं
भावों को
अपने-आप में ।
समयातीत
बना देते हैं उन्हें
स्वयं में सहेजकर ।

शब्द
हैं बाँध
जो भावनाओं के असीमित प्रवाह को
बाँध लेते हैं
अपनी सीमाओं में
और
मर्यादित कर उसे
यादगार बना जाते हैं ।

शब्द
है ताजमहल ,
एक प्रेम-कहानी है
जिसमें ठहरी हुई ।

2 comments:

  1. शब्द
    है ताजमहल ,
    एक प्रेम-कहानी है
    जिसमें ठहरी हुई ।
    adbhud rachna ... adbhud vimb.. badhai!

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  2. शब्द
    हैं बाँध
    जो भावनाओं के असीमित प्रवाह को
    बाँध लेते हैं
    अपनी सीमाओं में
    और
    मर्यादित कर उसे
    यादगार बना जाते हैं ।
    shabd ki mahima aur uski takat ka sunder chitran.......

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