Monday, April 26, 2010

तुम

तुम
एक अनदिखी
कड़ी
हम सबको
जोडती सी ,
तुमसे ही
श्रंखला
संबंधों की ।
तुमसे ही
सतरंगी
हमारा जीवन ,
चाँद की चांदनी
तुम्ही से ,
सितारों की झील-मिल
तुम्ही से ।
तुमसे ही उजाला
उम्मीद के सूरज का,
तुमसे ही
महकता सबेरा,
चमकती दोपहरी ,
मोहक ढलती शाम
तुम्ही से ।
हमारे कण-कण में
तुम्हारा प्यार ,
तेरी व्याप्ति ,
तेरा विस्तार ।
तेरे बिना
हमारा जीवन
एक बिखरा घर,
एक डरावना
स्वप्न
तुम
हम सबका
जग-मग जीवनदीप ,
लेकिन
मैं अब भी
तुम्हें नहीं समझ पाया ,
समझ पाया
तो बस
तेरा प्यार,
तेरा समर्पण ,
तेरा त्याग,
तेरा बलिदान।

2 comments:

  1. मैं अब भी
    तुम्हें नहीं समझ पाया ,
    समझ पाया
    तो बस
    तेरा प्यार,
    तेरा समर्पण ,
    तेरा त्याग,
    तेरा बलिदान....

    राजीव जी जो समझ पाए वही काफी नहीं ये ज़िन्दगी के लिए ....!!

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