समय का "हैमलेट" होना
तो समझते हैं न पापा ?
तब तो यह भी समझते होंगे
जिम्मेवार कौन है-समय या आप ?
मैं तो नहीं हूँ
क्योंकि न तो मैं समय हूँ
और न ही आप .
मैं हजारों टुकड़ों में
टूटकर बिखरा आइना हूँ
अपने आप में समेटे
आपक आपके पदचिन्ह
और समय की तस्वीर
टुकड़ों में बँटा अस्तित्व कह लें इसे .
उम्मीद की डोर थामे
जीवन की चाह लिए
कभी जीवन के साथ ,
कभी जीवन के पार
एक अर्थहीन बलिदान दे रहा हूँ -
आप चाहे तो ऐसा कह सकते हैं
लेकिन आप इस बदलाव को कैसे देख पायेंगे ,
आप तो अपनी आदतों के शिकार हैं,
आदत जो आज चाहत बन गयी है ,
स्वभाव बन गया है।
इसी चाहत ने
आपको "मिदास" बना दिया है ,पापा ।
आप तो सिर्फ सोना चाहते हैं,सोना,
और कुछ नहीं।
चेतना और परिवर्तन
एक भयानक गाली है आपके लिए।
सोने सा बेटा आपको जगा नहीं पाता,
शायद जगा भी नहीं पायेगा
क्योंकि उसे खुद के सोना होने का
अहसास जो है।
समय का हर कतरा
वहशी है,पागल है
क्योंकि उसके हर कतरे को ढाला है
आपने
अपने सांचे में
सजाया है, संवारा है
अपनी मर्जी से
अपनी आदतों की तरह ।
तभी तो सोचता हूँ
समय और आप ,
आप और मैं
एक ही जैसे क्यों हैं।
("मिदास" एक राजा था जो सोने का भूखा था।
उसने ईश्वर से यह वरदान माँगा था कि वह जिस किसी
वस्तु को छुए वह सोने की हो जाए")
आज के पिता से आज का एक बेटा जवाब मांग रहा है। और कुछ साम्यता भी ढूंढ रहा है। राजीव जी के अंदर का कवि इस कविता में अपनी पिछली कविताओं की तुलना कई पायदान ऊपर खड़े होकर पाठक से मुखातिब है। जमीन से उस पायदान पर पहुंचने के लिए पाठक को सर्तक श्रम करना होगा।
ReplyDeleteकविता मध्य में आकर हल्की सी उलझ जाती है। मिदास की कहानी बहुत से पाठक नहीं जानते होंगे। अच्छा होगा कि कविता के अंत में दो लाइन में इस बारे में बता दिया जाए।
राजीव -अभिव्यक्ति की इस उचाई को देख कर हतप्रभ हूँ .इस अदभुत कविता के लिए बधाई .
ReplyDeleteराजीव जी जब मै अन्ग्रेजी साहित्य मे एम ए कर रहा था... हैमलेट के चरित्र चित्रन मे मैने इसे प्रोब्लेम ओफ़ "I" कहा था... आपके इस कविता के नायक के साथ भी ऐसा ही कुछ है... आधुनिक जीवन के खोखलेपन और द्वन्द को दर्शाती कविता आधुनिक कविता के फ़ोर्मेत मे है... अन्ग्रेजी कविता का स्त्रक्चर है.. सुन्देर कविता...
ReplyDeleteसमय का हर कतरा
ReplyDeleteवहशी है,पागल है
क्योंकि उसके हर कतरे को ढाला है
आपने
अपने सांचे में
सजाया है, संवारा है
अपनी मर्जी से
अपनी आदतों की तरह .
तभी तो सोचता हूँ
समय और आप ,
आप और मैं
एक ही जैसे क्यों हैं.
कल.. आज..और कल का बंधन कैसे छूट सकता है भैया ........
हम सारी उम्र अपनी ही प्रतिरूप तैयार करते रहते है
आपने जो लिखा आज का सच है वो .....बहुत चुनिदा शब्दों के साथ
अच्छी अभिव्यक्ति
निशब्द........
ReplyDeleteगजब..बहुत ही उच्च स्तरीय अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआपने जो लिखा आज का सच है वो
ReplyDeleteलाजवाब और सत्य, सूक्षमावलोकन बहुत गहरी बात कह गए आप तो. आप की सभी कवितायेँ एक से बढ़कर एक होती हैं
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति...
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