मां
जब मैंने पहली बार
तम्हारी गोद में
आँखे खोली थी
तब नहीं जानती थी मैं तुम्हें ,
नहीं जानती थी दुनियां को ,
दुनियांदारी को ,
नहीं जानती थी क्या होते हैं
अक्षर और शब्द
क्या होती हैं भाषा.
तुम रोज-रोज निहारती थी
मेरा चेहरा
कुछ पढती थी वहां
मैं तो बस देखती थी तुम्हें
मेरी आँखों में झांककर
बुदबुदाते हुए.
देखती थी तुम्हारे होठों को
बार-बार खुलते और बंद होते हुए
शायद मैं भी तेरे संग-संग
बुदबुदाती थी
तुम जो कहती थी
उसे समझाना चाहती थी,
पर समझ कहाँ पाती थी.
तुम कहती थी "माँ--माँ--माँ--माँ"
मैं तो बस
तुम्हें देखती थी
तुम्हारी नक़ल उतारती थी.
"बा-बा-बा-बा;पा-पा-पा-पा"
करते-करते
कब तुम्हारे मुंह से
अक्षर-अक्षर
निकल-निकलकर
मुंह के रास्ते
मेरे मष्तिष्क में समाते गए
आपस में जुड़ते गए
शब्द और वाक्य बनते गए
पता ही नहीं चला .
यही मातृभाषा है मेरी
ये तो तब जाना,
तब पहचाना
जब तुमने गोद में बिठाकर
मुझे बताया:
"अ" से "अमरुद", "ई" से "ईश्वर".
अक्षर से शब्द,
शब्द से वाक्य तक का सफ़र
मैंने तेरी गोद में ही तो पूरा किया.
तुमसे विरासत में मिला
यह अक्षर ज्ञान
मेरी मातृभाषा है, मेरी पहचान है
बिलकुल तुम्हारी तरह.
(राजभाषा दिवस के अवसर पर अपनी मातृभाषा को सादर समर्पित)
बहुत सुंदर कविता ! हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteइससे खूबसूरत समर्पण और क्या !
ReplyDeleteराजभाषा को समर्पित इस कृति के साथ मेरा भी हिंदी को प्रणाम और आपको बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता और बहुत सुंदर प्रस्तुति....हिंदी दिवस पर बधाई
ReplyDeleteअच्छी पंक्तिया ........
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
अक्षर से शब्द,
ReplyDeleteशब्द से वाक्य तक का सफ़र
मैंने तेरी गोद में ही तो पूरा किया.
तुमसे विरासत में मिला
यह अक्षर ज्ञान
मेरी मातृभाषा है, मेरी पहचान है
बिलकुल तुम्हारी तरह.
बहुत सुंदर कविता. हिंदी दिवस पर बधाई
"बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
सादर
समीर लाल"
ye tippani adarneey Sameer Lal jee se prapt hui hai jiske liye main unka dil se abhari hun.
बेहतरीन कविता....
ReplyDeleteअक्षर से शब्द,
शब्द से वाक्य तक का सफ़र
मैंने तेरी गोद में ही तो पूरा किया.
तुमसे विरासत में मिला
यह अक्षर ज्ञान
मेरी मातृभाषा है, मेरी पहचान है
बहुत सुंदर .......
बढ़िया जी
ReplyDeleteगज़ब की बेहतरीन रचना…………सच यही तो होती है मातृभाषा।
ReplyDeleteअक्षर से शब्द,
ReplyDeleteशब्द से वाक्य तक का सफ़र
मैंने तेरी गोद में ही तो पूरा किया.
तुमसे विरासत में मिला
यह अक्षर ज्ञान
मेरी मातृभाषा है, मेरी पहचान है
बिलकुल तुम्हारी तरह...................bahut khub..