संवारे थे करीने से अपने बाल
पहने थे अपने पसंद के परिधान
क्योंकि आज है "फादर्स-डे,
मुझे जाना है स्कूल
मिलना है अपनी टीचर जी से
उनसे पापा का परिचय करवाना है .
मम्मी नहीं चाहती थी मैं जाऊं स्कूल,
बनूँ हिस्सा उस भीड़ का
जिसमें शामिल थे
मेरे दोस्त और उनके पापा.
मैंने सोच लिया था जाउंगी,
जरूर जाउंगी स्कूल
अपने पापा से सबका परिचय करवाउंगी
सबको बताउंगी उनके बारे में.
मम्मी थी बहुत उदास,घबराई सी
पर आई थी मेरे साथ-साथ,
एक-एक कर मेरे दोस्तों ने
टीचर जी से अपने पापा को मिलवाया ,
उनके बारे में संक्षेप में बताया.
जब मेरी बारी आयी
टीचर जी ने बुलाया अपने पास
सबने देखा पापा नहीं हैं मेरे साथ
एक ने कहा "अरे!मिन्नी के पापा नहीं हैं उसके साथ"
दूसरे ने कहा "शायद! नहीं हैं उसके पापा"
किसी ने पीछे से कहा,
"सोचते होंगे कौन समय बर्बाद करे इन बेकार की बातों में "
इन सबसे कतई परेशान नहीं थी मैं .
मैं मंच पर खड़ी हुई और बोली
"देखो,मेरे पापा खड़े हैं मेरे साथ"
पर,आप सब नहीं देख पाओगे उन्हें
क्योंकि मेरे जैसी मन की आँखें
नहीं हैं आपके पास,
सुनकर दंग रह गए थे सभी.
मैंने कहा "मेरे डैडी नहीं हैं यहाँ,
दूर देश में रहते हैं वो ,
चाहते तो हैं रहना मेरे साथ
क्योंकि वर्ष में एक बार आता है
ये विशेष दिन."
पर,
एक सच्चे सैनिक थे,
आतंकवादियों लड़ते हुए
शहीद हुए थे वो
देश से बड़ा नहीं था
उनके लिए मेरा प्यार।
मैं बताना चाहती हूँ आपको
"बहुत प्यार करते थे मेरे पापा मुझसे ,
सुनाया करते थे अच्छी-अच्छी कहानियां ,
साईकिल चलाना सिखाया करते थे,
बताया करते थे गुर पतंग उड़ाने के".
मेरे जन्मदिन पर दिया था मुझे
मेरे गुलाबी ड्रेस
उससे मिलता-जुलता गुलाब.
आपकी नजरें नहीं ढूंढ़ पा रही हैं उन्हें
पर अकेली नहीं हूँ मैं
उन्होनें कहा था
मेरे दिल में रहेंगे धड़कन बनकर
चाहे कहीं भी रहे वो .
गर्व से चमकती मां की आँखों से
बह चली थी अविरल अश्रु-धार
उम्र से बड़ी बिटिया को देखकर
जो थी अब उसका जीवन,उसका प्यार-भरा आधार .
पापा के लिए उसका प्यार
गूंज रहा था चारो ओर
बनकर उसके सन्देश का सार
"मुझे है डैडी से बहुत प्यार,
आज भी चमकते है ध्रुव-तारा बन
मेरे आँगन में "
आ खड़े होते मेरे पास
जो आसमां नहीं होता इतनी दूर.
बंद आँखों से सदा पाया है
मैंने उनको अपने पास.
सबकी आँखें बंद थी,
सब देख रहे थे
मिन्नी का आत्मविश्वाश
जिसमें खड़े थे उसके पापा।
वह हौले से बुदबुदाई थी,
"मैं जानती हूँ आप हैं मेरे साथ,
आसमां नहीं है दूर, नहीं हैं दूर आप ".
यही था उसका सच,
उसकी ख़ुशी का राज.
इससे बड़ा कोई साथ हो ही नहीं सकता जो बनकर विश्वास दौड़ता है रगों में .... ये सबसे अपना है , हर वक़्त साथ है ,
ReplyDeleteइतने अच्छे पापा हैं मिन्नी के
आपकी कविता रुला गयी.. केवल इस लिए नहीं कि मिन्नी के पिता नहीं हैं बल्कि इस लिए कि उस छोटी बच्ची कितनी संवेदनशील है.. जिस मिन्नी की कल्पना आपने की है उसमे मैं आज अपने बच्चे को देख रहा हूँ... आँखें नाम हो गयी.. सुंदर कविता.. हर अनुच्छेद के साथ कविता और अधिक भावुक कर गयी है... देश के हर मिन्नी का विश्वास इसी तरह बना रहे यही कामना है ..
ReplyDeleteक्या कहूँ राजीव जी -यह कविता पढते हुए आँखे नम हो गयीं .
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव और उतनी ही सुंदर कविता। राकेश भाई आपको दिल से बधाई। आपने सब बातें कह दी और वह भी इस तरह की कतई बड़बोलापन नहीं झलकता उनमें। आपकी इस कविता में सब कुछ है।
ReplyDeleteसबसे जरुरी बात कि जब कविता को पढ़ना शुरू करते हैं तो वह अंत तक ले जाती है।
कविता में थोड़ी सी कमी है पर वह क्षम्य है। आप एक बार ध्यान से देखेंगे तो आपको भी नजर आ जाएगी। देखिए-
आज सुबह-सुबह नहाई थी मैं
संवारे थे करीने से अपने बाल
पहने थे अपने पसंद के परिधान
क्योंकि आज है(था) "फादर्स-डे,
मुझे जाना है(था) स्कूल
मिलना है(था) अपनी टीचर जी से
उनसे पापा का परिचय करवाना है(था) .
इसी तरह एक और जगह शब्द आगे पीछे हो गए हैं-
मैं मंच पर खड़ी और हुई बोली
इस पंक्ति में और हुई के पहले आ गया है। कुछ वर्तनी की त्रुटियां हैं,पर चलेंगी।
मैं आज आपको अनुसरण करके जा रहा हूं।
एक बार फिर से बधाई।
मम्मी नहीं चाहती मैं जाऊं स्कूल,
ReplyDeleteयह पंक्ति भी इस तरह होनी चाहिए-
मम्मी नहीं चाहती थी मैं जाऊं स्कूल
आँखें भर आयी हैं……………सबसे सशक्त रचना ………………जीवन का सच दिखाती हुयी।
ReplyDeleteकोई शब्द नहीं कहने को..भाव समझियेगा.
ReplyDeleteHi Rajiv,
ReplyDeleteIt's a beautiful creation. I'm short of words to praise this marvelous piece of work. Very touching lines. You made me emotional. Love for father and the pride for his sacrifice is wonderfully presented in the lovely lines.
Regards,
zealzen.blogspot.com
ZEAL
..
दिल को छूती कविता।
ReplyDeleteदेसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!
बहुत संवेदनशील, भावनाओं को शब्द नहीं आंसुओं और दर्द में पिरोया है एक अच्छी समझदार और सहनशील बेटी
ReplyDeleteमैं मंच पर खड़ी हुई और बोली
ReplyDelete"देखो,मेरे पापा खड़े हैं मेरे साथ"
पर,आप सब नहीं देख पाओगे उन्हें
क्योंकि मेरे जैसी मन की आँखें
नहीं हैं आपके पास,
सुनकर दंग रह गए थे सभी.
मैंने कहा "मेरे डैडी नहीं हैं यहाँ,
दूर देश में रहते हैं वो ,
चाहते तो हैं रहना मेरे साथ
क्योंकि वर्ष में एक बार आता है
ये विशेष दिन."
पर, एक सच्चे सैनिक थे,
आतंकवादियों लड़ते हुए
शहीद हुए थे वो
देश से बड़ा नहीं था
उनके लिए मेरा प्यार।
आज आँखे भर आई आपकी कविता पढ़ के ......अपने दिन याद आ गए की एक बेटी के लिए पापा का होना कितना जरुरी है