गृहणी हूँ मैं
न जाने कितने संबंधों में
बंधी हूँ मैं ,
कभी पत्नी,कभी माता
कभी कुछ और हूँ मैं
सृजन का सार हूँ मैं,
सभी संबंधों का आधार
पति और बच्चों से बना
एक छोटा सा
सुंदर संसार हूँ मैं ,
मै देखती हूँ घर और बाहर ,
सास-ससुर को रखती हूँ सादर ।
सबकी अपेक्षाओं ,
उम्मीदों से ऐसी बनी हूँ मैं
गर्व है मुझे
अपने गृहिणी होने पर
क्योंकि थोड़े में पा लेती हूँ
संसार का सारा सुख
पूरा जीवन जी लेती हूँ मैं
बन जाती हूँ
गम और ख़ुशी की पहचान।
सुबह-सुबह
बिटिया को करती हूँ तैयार,
छोड़कर आती हूँ स्कूल वैन में
पति को जाता देखती हूँ दफ्तर
दरवाजे पर खड़े-खड़े तबतक
जबतक की वो
आँखों से ओझल नहीं हो जाते ।
कुछ डर,कुछ संशय लिए
बना रहता है मन में एक उद्वेग
उनके लौटकर घर आने तक ।
उन सबके जाते ही
घर के साथ-साथ
मन का खालीपन भी
काटने को दौड़ता है,
ह्रदय में मची रहती है हल-चल
विचारों की ,
नजरें बिछी होती हैं सड़क पर
उन सबके लौट आने तक।
इस खालीपन से बचने के लिए
करने लगती हूँ
घर की साफ-सफाई,
कपड़े धोती,सुखाती हूँ,
किचेन संवारती हूँ,
सबकुछ करती हूँ
पर अनमने ढंग से.
उम्मीदों की डोली में सवार
करती हूँ उनके आने का इन्तजार ,
उन्हें देखते ही मन में
बरस जाती है सावन की घटा ,
निकल आता है पूरा चाँद,
मिट जाती हैं माथे की लकीरें ,
मैं सुंदर हो जाती हूँ ,
क्योंकि मैं मां हो जाती हूँ।
पर प्रायः यही होता है कि यह गृहणी खुद में एक प्रश्न बन जाती है
ReplyDeletebahut hi achha drishtikon,,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना...सार्थक चित्रण एक गृहणी के रुपों का.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeletegrihni ke mmadhyam se desh ke lakho mahilon ke jiwan par aapne roshni daalne ki koshish ki hai.. sunder rachna !
ReplyDeleteसमझ नहीं आया कि आप पक्ष में हैं या विपक्ष में।
ReplyDeleteमैं सुंदर हो जाती हूँ ,
ReplyDeleteक्योंकि मैं मां हो जाती हूँ। mamatva ke alok se alokit ek grihini ke manobhavon ko darshati achchhi rachna.......
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमैं सुंदर हो जाती हूँ ,
ReplyDeleteक्योंकि मैं मां हो जाती हूँ।
अरे मेरा मन भी पढ़ लिया आपने !!!!!!कितने नजदीक से देखा है आपने ये स्त्री मन. एक एक बात सोलह आने सच और देखिये इसके बाद हम सब ब्लॉग तक भी पहुँच ही जाते हैं. एक स्त्री मन को इतना सम्मान देने के लिए आभार
मै देखती हूँ घर और बाहर ,
ReplyDeleteसास-ससुर को रखती हूँ सादर ।
सबकी अपेक्षाओं ,
उम्मीदों से ऐसी बनी हूँ मैं ..............उम्मीदों पे जीना हर औरत की नियति है .........बहुत बहुत अच्छा और सच का वर्णन किया है आपने
राजीव जी -इस सुन्दर रचना के लिए बधाई .
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