Tuesday, August 24, 2010

अनदिखी डोर



राखी



कहते हैं जिसे बंधन



एक डोर है



अनदिखी,पतली सी ,



रिश्तों की



एक-दूसरे को जोड़ती हुई



कल भी इंतजार था इसका



बेसब्री से ,



आज भी है



उतनी ही शिद्दत से।



कह नहीं सकता



कितनी लम्बी है ये डोर



जो कुछ पल बंधकर



बनाए रखती है अनंत तक



भाई-बहन निश्छल प्यार





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