बचपन में रहता था
इसदिन का बेकरारी से इन्तजार ,
सपनों में भी दिखती थी
रंग-बिरंगी राखियाँ
कलाइयों में सजी हुई
चेहरे पर होती थी
चटक मुस्कान ।
बहनों का थाल में ,
रोली,राखी सजाना
दीप जलाना,
राखी से मिठाई तक होती थी
उसकी मिठास।
इस सबके पीछे होती थी मां,
होते थे पिताजी ,
हमारा तो होता था उत्साह
राखी बंधवाने का,
मिठाई खाने का
सारे गिले-शिकवे भूलकर
रक्षाबंधन मनाने का।
आज भी जब आता है
ये त्यौहार
ले जाता है मुझे
वर्तमान के पार
मेरे अतीत में
जहाँ गुडिया जैसी
मेरी बहना
बांध रही है
राखी मेरे हाथों में
खिलखिलाती हुई
और मैं
बंधता जा रहा हूँ
उसके प्यार में वैसे ही
जैसे यशोदा के हाथों बंधे थे
माखनचोर ।
भाई बहन के प्रेम के प्रतीक को आपने ए़क नया और सार्वभौमिक रूप दे दिया है.. बहुत ही मर्म्सपर्शी रचना.. नए समय में संबंधो को परिभाषित करती आपकी यह रचना उत्क्रिस्ट है ! अंतिम पंक्तिया कविता को नया रूप दे रही है..
ReplyDelete" मैं
बंधता जा रहा हूँ
उसके प्यार में वैसे ही
जैसे यशोदा के हाथों बंधे थे
माखनचोर "
" मैं
ReplyDeleteबंधता जा रहा हूँ
उसके प्यार में वैसे ही
जैसे यशोदा के हाथों बंधे थे
माखनचोर "
बहुत सुंदर रचना... खास तौर पर अंतिम पंक्तिया नया बिम्ब रच रही हैं ...
"बस यही एक ऐसा दिन है जब की बचपन की गुजरी सारी शैतानियाँ बहनों की छेदना और उनको चिढाना सब बहुत याद आता है क्योंकि इस दिन सब बहनें अपने भाइयों के पास नहीं होती हैं और जो होती हैं वे भाग्यशाली होती हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है."--yah tippani Rekha jee se prapt hui hai.Iske liye unka hriday se aabhari hun.
यशोदा के हाथों बंधे थे
ReplyDeleteमाखनचोर । .... yun bhai aur bahan ka bandhan , sabka apna-apna bachpan aur tyohaar ki khushi , yah tulna achhi lagi
सहज पर सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeletebahut pyari si rachna
ReplyDeleteसुंदर रचना ...आभार स्वीकारें ।
ReplyDeleteऔर मैं
ReplyDeleteबंधता जा रहा हूँ
उसके प्यार में वैसे ही
जैसे यशोदा के हाथों बंधे थे
माखनचोर
-बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना.
जैसे यशोदा के हाथ बंधे माखनचोर ...
ReplyDeleteसुन्दर कविता ..!
"raksha bandhan ka bandhan aur yashoda maa aur makhanchor ka bandhan do alag alag cheeje hai
ReplyDeleteye bhai bahin ka pyar hai vo ma bete ka.upama jab pouranik sandarbh me ho to sahi sambandhon ke sath ho.kavita ke bhav achchhe hai."-ये टिपण्णी आदरणीय कविता जी से प्राप्त हुई है.इस मार्गदर्शी टिप्पणी के लिए मैं उनका आभारी हूँ.
"मैं विनम्रतापूर्वक यह निवेदन करना चाहता हूँ कि इस उपमा का आशय मां-बेटे के प्यार की तुलना भाई-बहन के प्यारसे करना कतई नहीं है,मैं तो बस उस अटूट अदृश्य बंधन की बात कर रहा हूँ जो दोनों ही स्थानों पर एक सा है,सिर्फ रूप बदल गया है .हो सकता है मैं गलत होऊं, परन्तु मैंने इसका प्रयोग इसी सन्दर्भ में किया है."
ReplyDeleteजहाँ गुडिया जैसी
ReplyDeleteमेरी बहना
बांध रही है
राखी मेरे हाथों में
खिलखिलाती हुई
और मैं
बंधता जा रहा हूँ
उसके प्यार में वैसे ही
जैसे यशोदा के हाथों बंधे थे
माखनचोर ।
बहना का प्यार यूँ ही बना रहे ....दुआ है .....!!
बहुत सुन्दर भाव से सजी रचना ..
ReplyDeletepyar barsaati kavita..........:)
ReplyDeletebahut khubsurat!!
बहुत सुन्दर प्यारी सी रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचना ने भाई बहन के प्यार को ऐसा बांधा है कि बरबस आँखे भीग गई
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