सावन के महीने में ,
कड़कती बिजलियों के बीच
घनघोर बरसते पानी में
अकेला खड़ा मैं
तकता रहा आसमान,
निहारता रहा
सफ़ेद-काले भेड़ों से दौड़ते- भागते
बादलों के झुण्ड ।
मेरी इच्छा थी
यूँ ही मुसलाधार बरसते रहे
घने-काले घुंघराले बालों वाले मेघ,
और पड़ती रहे
उसकी शीतल फुहार
मेरे तन-मन पर
ताकि मुक्त हो जाऊं मैं
अतीत की सृजनहीनता से
बो सकूँ सृजन के नए बीज
नई सुबह में उग आने के लिए।
धो डालूं
अपना गुस्सा ,अपना कलुष ,
सावन की फुहार
बन जाये मेरा प्यार ,
बदरी बन सबको
तर कर जाऊं ,
बंजर भूमि में
स्नेह के बीज उगाऊं ।
हर युग, हर वर्ष
इस मौसम का रहा मुझे
बेसब्री से इंतजार ,
इसके साथ आये परिवर्तन का,
नवजीवन का इंतजार
जो पीढियां बनाती रहीं,
श्रृष्टिचक्र बनकर बार-बार
अपनी अंतहीन परिधि में
सबको घुमाती रही ,
देती रही वरदान
जीवन बनकर।
करूँगा अगली सुबह का इंतजार
जब फूलों की पंखुड़ियों पर,
दूब की नुकीली नोकों पर
टिकी होंगी मोतिया बूंदें
ओस की,
और हवा
अपने हिंडोले पर
हिला रही होगी
समस्त पादप-पुंजों को ।
दिखेगा नया उत्साह,
नया जीवन ,
हरियाली की शुरुआत ,
लौट जाऊंगा मैं
अपने बचपन में,
खुले आसमान के नीचे ,
बरसात में नंगे बदन
भींगता-भागता सा।
धो डालूं अपना गुस्सा ,अपना कलुष ,
ReplyDeleteसावन की फुहार बन जाये मेरा प्यार ,
बदरी बन सबको तर कर जाऊं ,
बंजर भूमि में स्नेह के बीज उगाऊं ।
sawan kee rimjhim bunden bhi ho jayen saarthak
सावन के महीने में कविता कल्पना से ओत प्रोत है जो खींच कर बाहर ले आती है और बारिश में भिगो रही है.. "ताकि मुक्त हो जाऊं मैं
ReplyDeleteअतीत की सृजनहीनता से
बो सकूँ सृजन के नए बीज
नई सुबह में उग आने के लिए।"
ये पंकितयां सावन को नया अर्थ दे रही हैं.. सावन के नया बिम्ब आपने प्रस्तुत किया है.. बहुत खूब !
kya sawan ki chhatta bikheri hai aapne.......shaandaar..:)
ReplyDeleteसावन को सृजन का त्यौहार बना दिया आपने.. सुंदर कविता !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletesundar rachana, savan ko adhar maan jo socha hai sab kuchh sach men ho.
ReplyDeletebehad umdaa bimb prayog ke saath ek behatareen kavitaa dil ko chhoo gayii.
ReplyDeleteएक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई।
ReplyDeleteबंजर भूमि में स्नेह के बीज ...बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअतीत की सृजनहीनता से
ReplyDeleteबो सकूँ सृजन के नए बीज
नई सुबह में उग आने के लिए।
धो डालूं
अपना गुस्सा ,अपना कलुष...
शुभकामनायें ..!
दिखेगा नया उत्साह,
ReplyDeleteनया जीवन ,
हरियाली की शुरुआत ,
लौट जाऊंगा मैं
अपने बचपन में,
खुले आसमान के नीचे ,
बरसात में नंगे बदन
भींगता-भागता सा।
आपकी इस कविता से दिल्ली में मौसम सुहाना हो गया