Monday, August 9, 2010

बुंदेलखंड का सच

बुंदेलखंड का सच
भूख का,तिरस्कार का ,
प्रकृति की मार का,
अपनों की दुत्कार का सच है.

जहाँ सपनों की फसल
बोने की चाह में
न जाने कितने ही सपने
तस्वीर बनकर रह गए .

कुंए के पानी के साथ ही
सूख गए हैं आँखों के आंसू ,
पथराई आँखे
आज भी करती हैं
बुझे चूल्हे के पास बैठ
अपनों का इंतजार
दरार पड़े खेतों ,
झुर्रीदार चेहरे के साथ ।

पूरब लगने लगा है
पश्चिम सा ,
सूरज हरवक्त दिखता है
क्षितिज पर
डूबता सा,
सर्द चांदनी रात देती है
आंसुओं-भरी सुबह.

खेत ख़ुशी नहीं देते आज
शरीर की तरह
सूखी है धरती
जो न हरियाली का सबब है,
न उमंगों का।

मन में उम्मीद का सूरज,
होठों पर सुबह लाली लिए
पालकी से उतरी थी,कम्मो,
अपने पिया की दहलीज पर.
वह ब्याही गयी थी
लड़के के संग-संग,
उसके खेतों के साथ।

सोने जैसी फसल की चाहत ,
"लहलहाती फसल" की सच्चाई
खा गयी उसका पति,
उसका खेत ,
उसके सपने।

मिला क्या दहकती आग
जो चूल्हा नहीं जला सकी ,
बस लगाई पेट में आग,
जला गई दिल को,
कर गई सपनों को खाक।

7 comments:

  1. मिला क्या दहकती आग
    जो चूल्हा नहीं जला सकी ,
    बस लगाई पेट में आग,
    जला गई दिल को,
    कर गई सपनों को खाक।
    क्रूर किन्तु सच।

    ReplyDelete
  2. कुंए के पानी के साथ ही
    "सूख गए हैं आँखों के आंसू ,
    पथराई आँखे
    आज भी करती हैं
    बुझे चूल्हे के पास बैठ
    अपनों का इंतजार
    दरार पड़े खेतों ,
    झुर्रीदार चेहरे के साथ । "
    bundelkhand ke bhane aapne desh ke bade hisse me pasri sukhaad ki sthiti se awgat karaya hain.. maarmik rachna hai... upar ki panktiyan behand prabhavshali ban gayeen hain

    ReplyDelete
  3. सोने जैसी फसल की चाहत ,
    "लहलहाती फसल" की सच्चाई
    खा गयी उसका पति,
    उसका खेत ,
    उसके सपने। haqeekat baya kar gayee aapki kavita.....

    ReplyDelete
  4. मन में उम्मीद का सूरज,
    होठों पर सुबह लाली लिए
    पालकी से उतरी थी,कम्मो,
    अपने पिया की दहलीज पर.
    वह ब्याही गयी थी
    लड़के के संग-संग,
    उसके खेतों के साथ।
    कुंए के पानी के साथ ही
    सूख गए हैं आँखों के आंसू ,
    पथराई आँखे
    आज भी करती हैं
    बुझे चूल्हे के पास बैठ
    अपनों का इंतजार
    दरार पड़े खेतों ,
    झुर्रीदार चेहरे के साथ ।

    कितना सच है ये केवल धरती ही नहीं मन भी सूख कर संकुचित हो गए हैं मेरे ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आभार

    ReplyDelete
  5. हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

    ReplyDelete
  6. मिला क्या दहकती आग
    जो चूल्हा नहीं जला सकी ,
    बस लगाई पेट में आग,
    जला गई दिल को,
    कर गई सपनों को खाक ..

    कठोर सत्य है ....

    ReplyDelete