Tuesday, August 3, 2010

मैंने देखा है.....

सूखी रेत की तरह
मैंने जिंदगी को
मुट्ठी से
फिसलते देखा है,
काफी करीब से
अपने वर्तमान को
अतीत में
बदलते देखा है
देखा है अपने सपनों को
सजते-संवरते,भरते उड़ान
बार-बार .
अपनी सोच की श्रंखला को
कई बार टूटते-बिखरते देखा है.
लोग आईने के पीछे
ढूंढते हैं खुद को
मैंने आईने में
खुद को बदलते देखा .

12 comments:

  1. मैंने भी देखा है
    ज़िन्दगी को रेत की तरह फिसलते
    और आस-पास कोई नहीं
    सबकुछ बदलते
    पर नहीं बदला मन
    ज़िन्दगी को पकड़ने की कोशिश में लगा है

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  2. bahut umada rachna ! naya bimb rach rahe hai aap.... blank verse me aapka music lajwab hai...

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  3. अच्छी प्रस्तुति ।

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  4. वाह वाह सुभान अल्लाह ! क्या खूब देखा और दिखाया आपने

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  5. लोग आईने के पीछे
    ढूंढते हैं खुद को
    मैंने आईने में
    खुद को बदलते देखा .

    वाह ……………क्या बात कह दी …………काश सब ऐसा देख पाते।

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  6. ये बदलाव सभी देखते है लेकिन उसके इस भाव से देख कर शब्दों में पिरो देना आपकी भावाभिव्यक्ति को नए आयाम देती हैं

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  7. …काश सब ऐसा देख पाते।

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  8. लोग आईने के पीछे
    ढूंढते हैं खुद को
    मैंने आईने में
    खुद को बदलते देखा .

    its a brilliant creation, great deep thoughts with great sense of introspection...

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