कल जैसा नीला नहीं है आसमान
आज अँधेरा पहले से अधिक घना है,
दीये ने रौशनी से नाता तोड़ लिया है,
आज चमकता सूरज सिर पर है,
पेड़ों ने हरियाली का दामन छोड़ दिया है,
मुंह मोड़ लिया है सावन की घटाओं ने,
पुरवैया बयार ने बहना छोड़ दिया है.
गलियों-कुचों में रहते हैं ढेरों लोग,
फिर भी यहाँ सन्नाटा पसरा हुआ है,
सुख-सुविधाओं का लगा है अम्बार,
पर,बात-बात पर होने लगी है
अपनों में तकरार,
बच्चे भी भूल रहे हैं अपना व्यवहार,
जाने-अनजाने ही हर स्तर पर
होने लगा है रिश्तों का तिरस्कार ,
जलकुम्भी के ढेर सा हो गया है जीवन,
ढेर के ढेर पर सबकी जडें अलग-अलग,
नई जडें ज़माने की चाह में
हर बरसात में होते रहे अपनी जड़ों से जुदा.
अपनों की यादों को गुम हो जाने दिया है
गुम होती तस्वीरों के साथ
बस बचाकर रखा है
तो बिना भविष्य का एक छोटा-सा अतीत,
एक छोटा-सा वर्तमान.
जीवन-वृत्त को काटकर
रेखा बनानेवाले
कभी लौट नहीं पाते
अपने स्वर्णिम अतीत की ओर,
नहीं दे पाते अपने सपनों को मनचाहा रंग
क्योंकि रेखाओं की परिधि नहीं होती.
अतीत तो आज भी बाहें फैलाये
अंक में भर लेने को आतुर है वर्तमान
पर,वर्तमान अपने चका-चौंध से इतर
कहाँ देख पाता है,कब देख पाता है ये सब ?
सुख की चाह में गले लगा लेता है
जीवन-भर के लिए अकेलेपन का रोग
अवसाद-भरा,भटकाव-भरा.
कल जैसा नीला नहीं है आसमान
ReplyDeletelekin aapke kalam se nikle shabd uss aasman ko nikhar rahe hain........:)
bahut khubsurat rachna........!!
जीवन-भर के लिए अकेलेपन का रोग
अवसाद-भरा,भटकाव-भरा. ........
sach me.......
वाह!!!!!!क्या बात कह दी. कितनी तर्कसंगत आज के माहौल के अनुरूप. सब कुछ देख कर दिल तो जलता है पर क्या करें" नहीं दे पाते अपने सपनों को मनचाहा रंग क्योंकि रेखाओं की परिधि नहीं होती".नहीं तो बाँध लेते हम भी कुछ पल अपने आंचल में
ReplyDelete" जीवन-वृत्त को काटकर
ReplyDeleteरेखा बनानेवाले
कभी लौट नहीं पाते
अपने स्वर्णिम अतीत की ओर,
नहीं दे पाते अपने सपनों को मनचाहा रंग
क्योंकि रेखाओं की परिधि नहीं होती."
in panktiyon ne man moh liya.. rishto ka marm batati yeh kavita vakai sunder hai...badhai! charcha manch par shamil hona apne aap me uplabdhi hai.. so thoda meetha ho jaaye!
जीवन-वृत्त को काटकर
ReplyDeleteरेखा बनानेवाले
कभी लौट नहीं पाते
अपने स्वर्णिम अतीत की ओर,
नहीं दे पाते अपने सपनों को मनचाहा रंग
क्योंकि रेखाओं की परिधि नहीं होती....और यहीं से शुरू होता है अनचाहा सफ़र, जहाँ सबकुछ अनचाहा , अनमना,
कटु दुह्स्वप्न होता है
जीवन-वृत्त को काटकर
ReplyDeleteरेखा बनानेवाले
कभी लौट नहीं पाते
अपने स्वर्णिम अतीत की ओर,
नहीं दे पाते अपने सपनों को मनचाहा रंग
क्योंकि रेखाओं की परिधि नहीं होती."
...........
बड़ा सच लिखा आपने ......!!!!
अपनों की यादों को गुम हो जाने दिया है
ReplyDeleteगुम होती तस्वीरों के साथ
बस बचाकर रखा है
तो बिना भविष्य का एक छोटा-सा अतीत,
एक छोटा-सा वर्तमान.................jeevan se tasvire kho gayi ye bat maani hai.....par yaade kabhi nahi kho sakti dost
bahut accha likha hai aapne
बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
ReplyDeleteआशा
सुंदर ,सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sundar prastuti.
ReplyDeleteshabdon ke jaal me jaise kho gaya main...
ReplyDeletebahut hi achhi rachna...