अनदिखे भावों के टूटन
कौन देखता है?
कौन देखता है
उनसे उभरता दर्द
कब देखता है?
सितार के तार का टूटना
और
उस टूटन में
उसके स्वर का
गुम हो जाना
तो सब देखते हैं.
कौन देखता है
एक अनगूंजा स्वर
देर तक ठहरा हुआ?
टूटते तो घरोंदें भी हैं,
हिरोशिमा भी,
उनका टूटना,
टूटकर बिखरना
तो सब देखते हैं,
पर अस्तित्व का
बिखरना
कौन देखता है,
कब देखता है?
आग और धुंए का
उठता गुबार
सब देखतें हैं
पर उसके साए में
पलते-बढ़ते
दूसरे गुबार को
कौन देखता है?
कौन भूलता है
उस घुटन का दर्द,
टूटन का दर्द?
तभी तो तलाश है उस व्यक्ति की जो आधी रोटी का मूल्याँकन करता हो, नदी के गीत से परे उसका प्रलाप सुनता हो
ReplyDeleteइसीलिए अस्तित्व को बिखरने नहीं देना चाहिए....
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
bahut bhavpoorn rachna !
ReplyDeleteकौन भूलता है
उस घुटन का दर्द,
टूटन का दर्द? in panktiyon ne dil ko chhoo liya..
आग और धुंए का
ReplyDeleteउठता गुबार
सब देखतें हैं
पर उसके साए में
पलते-बढ़ते
दूसरे गुबार को
कौन देखता है?
कौन भूलता है
उस घुटन का दर्द,
टूटन का दर्द?
किस तरह दर्द को उकेरा है शब्दों से.जो दर्द अभी तक महसूस नहीं होते थे आज हो रहे हैं