लोग
मुझे पागल
समझते हैं
क्योंकि
मैं
तन नहीं ढकता
अपने मन का,
नहीं ढो पता हूँ
संस्कारों की लाश,
सर्द रिश्तों का
बासीपन
अपनेपन की गर्माहट
नहीं देता,
नहीं देता
वो अनदिखी डोर
जो बांधे रखती है
हम दोनों को
साथ-साथ.
मेरी आदिम भावना
तपिश ढूंढ़ती है,
तपिश ,
रगों में
ढूंढ़ती है
खून का उबाल ,
ढूंढ़ती है
भावों में तड़प
तुम्हारे लिए
एक अनबुझी प्यास लिए
एक अनजानी चाह लिए .
बहुत सुन्दर !
ReplyDeletewell said Rajiv !
ReplyDeleteHata off !
.
hats off *
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति!! बधाई.
ReplyDeletebahut hi achhi rachna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteए़क अलग भाव की कविता ... प्रेम में पागल हुए कवि के उद्दत कल्पना की कविता
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