Wednesday, July 14, 2010

चिट्ठी

बड़े जतन से
सहेजकर रखा है
तुम्हें आजतक ,
क्योंकि
तुझमें समाएं हैं
मेरे दादाजी , दादी मां,
और समाया है
मेरे लिए उनका प्यार .
तुझमें सिमटे पड़े है
उनके बोल,
बोल की मिठास,
उनका स्नेह,
उनका आशीष.

दादा-दादी तो नहीं हैं
आज हमारे बीच
पर,तुमने
संजो रखी है
उनकी यादें
अपने सीने में
मेरे लिए .
जब कभी भी
देखता हूँ तुम्हें
चल-चित्र की भांति
सामने आ खड़े होते हैं
वे दोनों .

आज भी
उन खतों में
घूमती है दादी,
उनकी बातें बुलाती हैं,
जब भी छूता हूँ तुम्हें
बन जाती हो
दादी मां की गोद,
दादाजी का कन्धा बन
सामने आ जाती हो .

आज भी
तुममें है
मेरा बचपन ,
मां का दुलार,
पिताजी की बातें,
उनकी नसीहतें
"दूर जा रहे हो,
नई जगह है,
ध्यान से रहना,
दूसरों से सदा
अच्छा व्यवहार करना "
पढ़ता हूँ तुम्हें
बार-बार,कई-कई बार,
पर,
उनमें लिखी बातों को
दूरभाष पर हुई बातों की तरह
बिसरा नहीं पाता हूँ
क्योंकि
वे ठहरी हुई हैं
तुम्हारे पन्नों में
सदा के लिए
यादें बनकर.

2 comments:

  1. rajiv jee eak baar phir naye tarah ki rachna... chitthi... email ke jamnane me chitti ko yaad karna bahut hi NOSTALGIC FEELING deta hai aur man varsho dur peechhe chala jaata hai.... abhi abhi eak mitra ke blog par chitti naam ke rachna padhi thee... www.merebhav.blogspot.com do alag alag type ki kavita eah hi bahv ko carry kar rahi hai... wakai sunder rachna... khas taur par ye panktiya atanyat sunder hai..
    "आज भी
    जब देखता हूँ
    "उसका" ख़त
    याद आता है
    बीता हुआ कल,
    वो बैचनी,
    वो अपनापन,
    कितना बैचैन कर जाता था
    उसके ख़त का इन्तजार,
    कैसे लग जाती थी
    सावन की झड़ी,
    नाच उठता था
    मन-मयूर,
    उसका ख़त पाकर,"
    badhai

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  2. मेरा बचपन ,
    मां का दुलार,
    पिताजी की बातें,
    उनकी नसीहतें
    "दूर जा रहे हो,
    नई जगह है,
    ध्यान से रहना,
    दूसरों से सदा
    अच्छा व्यवहार करना "
    yaad aata hai, bahut yaad aata hai

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