मेरा घर है
छोटा सा,
टूटा-फूटा हुआ,
छप्परदार ,
इस छप्पर में हैं
ढेर सारे छेद.
जब उतर आती है
घनी अँधेरी रात ,
टूटे छप्पर के छेद से
झांकता है
एक मोहक तारा
शायद कहता है-
"तुम्हारी हालत पर
तरस आता है".
मैं जानता हूँ
वह मेरे घर को देखता है
घर के टूटे
छप्पर को देखता है,
मेरे मन को,
मन की उड़ान को
नहीं देखता
जो जाड़े की
सिहरन भरी रात में
रजाई की ओट से
छप्पर के पार
देखता है
तारों भरा आकाश
और
सोचता है
किसने बनाया होगा
नीला आकाश,
चमकता सूरज ,
दमकता चाँद.
किसने जड़े होगे
रात की चादर में
जगमगाते सितारे,
इतने सारे!
इतने मोहक!
इतने प्यारे!
घनी अँधेरी रात ,
ReplyDeleteटूटे छप्पर के छेद से
झांकता है
एक मोहक तारा ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
घर के टूटे
ReplyDeleteछप्पर को देखता है,
मेरे मन को,
मन की उड़ान को
नहीं देखता
...
apni udaan ka hamen to pata hai n, bahut badhiyaa
behad sundar abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteeak bhavuk kar dene wali rachna ! ghar wahi hai jiske neeche aanand aaye ! ghar ke bahane kai aur baate keh dee aapne ! sunder rachna !
ReplyDeleteघनी अँधेरी रात ,
ReplyDeleteटूटे छप्पर के छेद से
झांकता है
एक मोहक तारा ।
बहुत सुन्दर रचना बेहतरीन अभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteapka ghar sabse pyara, sabse nyara......:)
ReplyDeleteaapke shabd sabse pyare......khubshurat!!
ek bahut hi masum sa ehsaas..!
ReplyDeleterajiv ji,
ReplyDeletebahut komalta se aapne aantarik peeda ko ek sakaratmak soch mein parinat kar diya hai. uttam rachna...badhai aapko.