Thursday, July 15, 2010

दिल्ली

मेरी दिल्ली
अपनी सारी
विविधताओं,
अपनी सारी
विषमताओं
अपनी बदमिजाजी ,
अपनी सारी
बदगुमानी ,
अपनी झोपड़पट्टीयों,
अट्टालिकाओं के साथ
दिल्ली
कब मेरे दिल में
समां गई
पता ही नहीं चला.

इसके बहते नाले,
इसकी सूखी नदियाँ,
इसके भीड़-भरे चौराहे,
हर जगह धक्का-मुक्की
कब मन को भा गए,
पता ही नहीं चला.

यह भी पता नहीं चला
कब वह मुझमें
और मैं
उसमें.

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