Wednesday, July 7, 2010

बिटिया

बिटिया,
तू तो
कविता है मेरी.
नाजों पली
तितलियों के पीछे
दौड़ती-भागती
फूलों से लदी
मखमली
परिधान में सजी
नन्ही गुड़िया है मेरी.

निःशंक सोयी रहती है
मेरी गोद में
सपनों का संसार लिए
और
मैं
अपने चारो ओर
बुनती रहती हूँ
कल्पनाओं के अद्भुत
जाल.
ओढ़ लेती हूँ
सितारों से जगमगाती
अँधेरी रात,
और
हो जाती हूँ
अनंत .
तुझमें पाती हूँ
जीवन के सारे रस
सारे रंग
सुख-दुःख के
दो किनारों के बीच से
बहता हुआ.

तुम लगा देती हो
मेरे मन-आँगन में
खुशियों की झड़ी
उमड़ आती है
सावन की घटा,
खुल जाते है
सारे सृजन-द्वार
जब तुम छलकाती
अपनी निर्मल,
निश्चल मुस्कान
कर जाता है
व्योम को पार
हमारा आनंद,
हमारा प्यार.

18 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना राजीव जी ! बिटिया के माध्यम से नारी मन का बहुत सूक्ष्म चित्रण किया है आपने ! अदभुद !

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  2. bitiya se ghar ki raunak rahti hai bahut sundar bhav wali rachna

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  3. बेहद सुन्दर कविता।

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  4. agle janam mohe bitiya hi keejo..... man ke bhavon ko darshati sunder rachna ....

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  5. bahut hi khubsurat rachna.....

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  6. सुंदर एहसासों को सार्थक शब्द ।

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  7. बहुत सुंदर ..भावपूर्ण रचना...

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  8. simple n truth feeling. gr8

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  9. सुन्दर! मन के विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति। और 'बिटिया'जो ब्याह दी जाती है हो जाती है पराये घर की, द्रवित हो उठता है मन, भर आते हैं मात्र कल्पना से नयनों मे नीर।

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  10. बिटिया जैसी ही प्यारी कविता ..!

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  11. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, बिटिया ने मन मोह लिया ।

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  12. जब तुम छलकाती
    अपनी निर्मल,
    निश्चल मुस्कान
    कर जाता है
    व्योम को पार
    हमारा आनंद,
    हमारा प्यार.

    सच ही कहा है आपने बिटिया तो होती ही ऐसी है बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति और खूबसूरत शब्द सयोंजन

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  13. एक बेटी होने के नाते आभार व्यक्त करना चाहूंगी इस रचना के लिए

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  14. bahut hi pyari rachna, mujhe kafi pehle 'bitiya'par likhi rachna yaad aa gayi, shayad aapko achhi lage--http://prritiy.blogspot.com/2010/04/blog-post_830.html

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