Wednesday, May 12, 2010

सांझ

जब
वातावरण में
हो उठता गुंजायमान
शिवालय के
घड़ीघंटे का स्वर
दिन के आखरी प्रहर
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
सुनाई देती
जंगल से चर कर
घर लौटती गायों के
रंभाने की आवाज
और
दिखाई देता
उनके खुरों की चोट से
उठता धूल का गुबार
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
पर्वतों के पेड़ों से
उतरने लगती
सुरमई धूप
और
हरियाली
खोने लगती
अपना रंग
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
पेड़ों पर उतर आते
खगवृन्द
और
उनका कलरव
हो जाता तेज
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
शनै-शनै
घटने लगती
सूरज की प्रकाश परिधि
और
पश्चिम में आकाश
हो जाता
सिन्दूरी लाल,
धुंधला हो जाता
आस-पास
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
गली में खेलते समय
कानों में पड़ती
बाबूजी की स्नेहभरी पुकार
और
रसोईघर से आने लगती
बर्तनों के खड़कने की आवाज
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

जब
आँगन के तुलसी-चौरे में
दीप जला
तुलसी को साँझ दिखाती माँ
और
श्रद्धा से
दीप्त हो उठता
उनका मुखमंडल
समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
मेरे आँगन में.

6 comments:

  1. जब
    आँगन के तुलसी-चौरे में
    राजीव जी आज तक की आपकी सबसे शाशाक्त रचना ... बेहतरीन... जीवन में शाम के साथ जुडी हर इक विम्ब को आपने खूबसूरती से प्रस्तुत कर दिया... उम्दा रचना है... शीर्षक "बचपन की सांझ" को अगर केवल "सांझ" भी रखते तो कोई हर्ज़ नहीं था..
    सांझ पहर में प्रकृति और अपने आस पास घटने वाली चीज़ों पर गहरी नजर रखी है और सुन्दरता से चित्रण किया है...
    "दीप जला
    तुलसी को साँझ दिखाती माँ
    और
    श्रद्धा से
    दीप्त हो उठता
    उनका मुखमंडल
    समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
    मेरे आँगन में. "
    शब्दों का प्रयोग बढ़िया है... शब्दों का चयन उत्तम है... अनुपम रचना ! बधाई !

    ReplyDelete
  2. अपना घर सपनों के बीज बोता है, आपकी कविता में कुछ ऐसे ही सुखद एहसासों के बीज मिले हैं

    ReplyDelete
  3. इतनी खूबसूरत सांझ , मैं तो गोधूलि में घुलमिल सी गई हूँ

    ReplyDelete
  4. जब
    आँगन के तुलसी-चौरे में
    दीप जला
    तुलसी को साँझ दिखाती माँ
    और
    श्रद्धा से
    दीप्त हो उठता
    उनका मुखमंडल
    समझ लेती मैं की सांझ उतर आई है
    मेरे आँगन में.
    बहुत दिनों बाद ये साँझ देखी व सुनी है
    आभार

    ReplyDelete
  5. dhalti hui sanjh ka behad chitratmak lekha.anchue bimb.khas kar 'hariyali ka apna rang khona'aur 'suraj ki ghatati hui prakash paridhi'ankho ke sath-sath dil ko chu gaya.tan-man sheetal karne vali rachana.

    ReplyDelete
  6. sanjh ka utarna mere aangan me alag-alag ahsaaso ke sath,khoob sunder avam saral shabd chayan..

    ReplyDelete