Tuesday, May 4, 2010

सबेरा होनेवाला है

जब
मस्जिदों में होती
पहली अजान
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

जब वातावरण में
मंदिर के घंटे का स्वर
होता गुंजायमान
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

जब सुनाई देती
कोयल कि कूक
पक्षियों के कलरव के बीच
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

जब कानों तक आती
मां की
ममता-भरी आवाज
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

कुछ पल बाद जब गालों पर होता
पापा के स्नेहिल हाथों का स्पर्श
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

जब रसोई से आने लगती
बर्तनों के खड़कने की आवाज
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

जब पूरब हो जाता सिन्दूरी लाल
और धरती पर फैलने लगता प्रकाश
समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।

2 comments:

  1. जब कानों तक आती
    मां की
    ममता-भरी आवाज
    और गालों पर होता
    पापा के स्नेहिल हाथों का स्पर्श
    समझ लेती मैं कि सबेरा होनेवाला है ।
    behad samvedansheel kavita... bahut umda chitran...

    ReplyDelete
  2. क्या बात है ! बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete