पाने की चाह में
सुनो एंजेल,
मैं दिल से दुखी हूँ उन लम्हों के लिए
जो तुमने अकेलेपन में बिताए
जहाँ सूरज की जगमगाती रोशनी तो थी पर
मैं नहीं था
जहाँ चाँदनी भरी रात तो थी पर मैं
नहीं था
मुझे माफ कर देना बेटा
हर उस धड़कन के लिए जो मेरी भी थी पर
अकेली थी
फूलों के उस छुअन के लिए
तितलियों के पीछे-पीछे भागने के लिए
वर्षों अकेले मैदान में दौड़ लगाने के
लिए
जिसमें मेरा साथ न था
मुझे माफ कर देना (एंजेल)
उन लम्हों के लिए
जो तुमने अकेले बिताए,
फूलों के उस छुअन के लिए,
जिसमें मेरा साथ न था।
मुझे माफ करना
बागों में तितलियों के पीछे
अकेले-अकेले भागने
मैदान में वर्षों अकेले दौड़ लगाने के
लिए।
मैंने अकूत धन अर्जित किए,
आगे बढ़कर चाहत का क्षितिज छुआ,
सफलता के शिखर पर जा बैठा,
लेकिन सबकुछ बिना तुम्हारे,
अकेले-अकेले, बिलकुल अकेले।
सफलता के मद में चूर
मैं यह भूल गया कि तुम मेरा हिस्सा,
मेरा वर्तमान, मेरा भविष्य हो
मैं यह भी भूल गया कि तुम मुझमें हो
और मैं तुममें।
इतना ही नहीं,
मुझे तो यह भी याद नहीं कि मैंने कब,
आखिर कब पहली बार तुम्हें ब्रश करने
को कहा था,
कब पहली बार मैंने तुम्हें ड्रेस
पहनने में मदद की थी,
कब पहली बार तुम्हें स्कूल बस में
चढ़ाया था,
कब पहली बार हम दोनों
साथ-साथ पार्क में घूमने गए थे
और मेरी उँगलियाँ पकड़
तुम हरी घास पर घूमी थी।
तुम्हें अकेले-अकेले बढ़ना पड़ा,
क्योंकि मैं और मेरी भावनाएँ,
मेरी संवेदनाएँ पश्चिमी हवाओं के असर
में थी?
जहां कोलाहल में भी सन्नाटा था,
आज मैं इसे दिल की गहराईयों से
स्वीकार करता हूँ।
स्कूल के पहले दिन भी मैं तुम्हारे
साथ नहीं था,
तुम्हारे पहले फुटबाल मैच में,
तुम्हारी पहली हैलोवीन परेड में,
कहीं भी तो मैं तुम्हारे साथ नहीं था, बेटा।
कहानी बनती ऐसी घटनाएँ हजारों हैं।
अपनी प्राथमिकताओं को सम्बन्धों से
आगे रखकर,
तुम्हारा दिल दुखाया,
स्वयं को भी दुःख दिया,
पर ये बात देर से समझ पाया।
सफलता और महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़
में
मैंने क्या खोया?
यह एक वर्ष पहले ही समझ पाया,
जब मैंने तुमसे पूछा था,
“याद करो, बेटा तुमने क्या-क्या खोया
जब मैं तुम्हारे पास नहीं था”
तुमने कहा, “पापा, रूको। अभी आती हूँ।”
तुम जब अपने कमरे से बाहर आई,
तुम्हारे हाथों में एक कागज था,
यह 22 घटनाओं की सूची थी।
यह मेरी तथाकथित प्रतिबद्धताओं में
खोया
हम दोनों का अनमोल पल था।
निश्चय ही यह खतरे की घंटी थी
और प्रत्येक छूटा अवसर
मेरे भीतर तूफान का सबब था
सम्बन्धों के तार उलझकर रह गए थे,
प्यार का ताना-बाना बिखर गया था।
इसका दोषी मैं हूँ
क्योंकि महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़
में
मैं पीछे मुड़कर देख ही नहीं पाया,
नहीं देख पाया
मैंने क्या खोया, क्या पाया।
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