Wednesday, December 1, 2010

काश ! सुन पाते ....

काश!
एकबार हम
तुलसी,सूर और कबीर
जैसे हो पाते,
मौन रहकर सुन पाते
अपने भीतर अनगूंज गूँज
अनहद नाद की.

किसी के होने का अनुभव
अपने भीतर कर
उसमें अपना विश्वास जगा पाते.
निकल आते बाहर
मंदिर-मस्जिद,गिरजा और गुरुद्वारों से,
इन सबको अपने दिल में बसाकर
जला लेते
सम्मान से सम्मान का दीप,
अनुभवों के खेत में
विश्वास की फसल
फिर से उगा पाते,
अपने आत्म-विश्वास को
आस्था में बदल पाते .

दोहराते
रामचरित का दृष्टान्त
बार-बार,कई-कई बार,
अपने घर महाभारत नहीं दोहराते.

मोती बन पिरोये जाते एक सूत्र में
तो शायद आज
यूँ न बिखरते दाना-दाना
अलग-अलग,
अलग-थलग न पड़ जाते.

अब समय आ गया है
उम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.

समय आ गया है
यह समझने और समझाने का
हमने ही बांटे हैं
धरती और आकाश,
हमने ही बांटे है
खेत और खलिहान
कुछ अधिक पाने की चाह में.

28 comments:

  1. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
    samay to jane kab se khada hai , bas pahal karni hai

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  2. आज के समय में खत्म या कमजोर पड़ती रचनात्मकता पर रौशनी डालती कविता अच्छी है .. संवेदनशील.. नई सोच वाली कविता..

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  3. जला लेते
    सम्मान से सम्मान का दीप,
    अनुभवों के खेत में
    विश्वास की फसल
    फिर से उगा पाते,
    अपने आत्म-विश्वास को
    आस्था में बदल पाते .


    बहुत बढिया......
    मुझे आशा है धीरे धीरे सब समझ जायेगे और एक नै भारत का उदय होगा ........

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  4. उम्मीद की बंजर जमीन पर विश्वास की फसल उगानी है ...
    घृणा के कैक्टस को समूल मिटाना है ...
    सार्थक सन्देश ...
    सशक्त रचना ....!

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  5. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
    बहुत सार्थक सन्देश और प्रेरणा देती रचना। बधाई।

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  6. काश!
    एकबार हम
    तुलसी,सूर और कबीर
    जैसे हो पाते,
    मौन रहकर सुन पाते
    अपने भीतर अनगूंज गूँज
    अनहद नाद की.
    ................बहुत सार्थक सन्देश

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  7. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
    बहुत सुंदर संदेश-आशा और विश्वास का संगम....
    सुंदर रचना

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  8. Vani Sharma to me

    मैंने भी शायद ऐसा ही कुछ लिख दिया ...

    "कंधे मेरे तेरी बन्दूक के लिए नहीं है ...
    यू आर माई स्वीटी पाई ...."

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  9. vandana gupta to me

    "बेहद गहन और उम्दा प्रस्तुति…………
    काश! सच जान पाते ,
    सुन पाते तो ये हालात न होते।"

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  10. सब हमारा ही किया धरा है।

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  11. सिर्फ एक शब्द... "काश"
    वाह...

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  12. Aruna kapoor to me

    एक अलग सी पहचान बनाती,
    सुंदर कविता ...धन्यवाद्!

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  13. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
    अरे वाह राजीव जी, आपको तो ये पोस्ट "अमन का पैगाम" पे भेजना चाहिए.वहां ऐसे विचारों का इंतज़ार मासूम जी कर रहे हैं.
    बहुत ही सुन्दर और समाज के हित में लेखन है आपका

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  14. आदरणीय राजीव सर
    नमस्कार.. मैं तो आपकी कविता का प्रशंशक हो गया हूँ.. वर्तमान कविता.. आधुनिक जीवन के खोखलेपन को जाहिर कर रहा है ठीक उसी तरह जैसे T.S.Eliot ने अपनी कविता THE HOLLOW MEN में लिखा है.. कुछ पंक्तिया उधृत करता हूँ... यह THE HOLLOW MEN की तीसरी कविता का अंश है..
    "This is the dead land

    This is cactus land
    Here the stone images
    Are raised, here they receive
    The supplication of a dead man’s hand
    Under the twinkle of a fading star.

    Is it like this
    In death’s other kingdom
    Waking alone
    At the hour when we are
    Trembling with tenderness
    Lips that would kiss
    Form prayers to broken stone."

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  15. ji bahut hi badhiya..
    padhwaane aur hilaane ke liye shukriya...

    kunwar ji,

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  16. सुंदर कविता ...धन्यवाद्

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  17. badalte badalte kis tarah badal gayee jindagi....kash....

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  18. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.

    काश हम सब यह समझ पाते..बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

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  19. धरती और आकाश,
    हमने ही बांटे है
    खेत और खलिहान
    कुछ अधिक पाने की चाह में

    बहुत अच्छी बात कही है ...रामायण से नहीं महभारत से लोंग सीख रहे हैं ..

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  20. अब समय आ गया है
    उम्मीद की बंजर जमीन पर
    विश्वास की फसल उगाने का,
    घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
    ...bahut sundar ...samvedanshil rachna.

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  21. gyan chand
    to me
    मन की भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति !
    वर्तमान समय की विद्रूपताओं को रेखांकित करती हुई आपकी रचना पढ़ कर अच्चा लगा.!
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  22. राजीव जी! जिस चीज़ की आज सबसे ज़्यादा कमी है समाज में उसे आपने जिन बिम्बों के सहारे दर्शाया है, उससे तो कायल हो गया आपका.. बेहतरीन!!

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  23. समय आ गया है
    यह समझने और समझाने का
    हमने ही बांटे हैं
    धरती और आकाश,
    हमने ही बांटे है
    खेत और खलिहान
    कुछ अधिक पाने की चाह में

    एक शायर ने कहा है कि:
    मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में बॉंट दिया भगवान को
    नदियॉं बॉंटी सागर बॉंटे, मत बॉंटो इंसान को।

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  24. मेरी रचना को अपने दिल में स्थान देने के लिए
    मैं आप सबका आभारी हूँ .
    सादर..

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  25. निकल आते बाहर
    मंदिर-मस्जिद,गिरजा और गुरुद्वारों से,
    इन सबको अपने दिल में बसाकर
    जला लेते
    सम्मान से सम्मान का दीप,
    बहुत खूब ...इन हालातों ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है , हमें सारे भेद मिटाकर सिर्फ इंसानियत को महता देनी चाहिए ....शुक्रिया

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  26. बहुत खूब लिखा है.शुक्रिया

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