बदला तो बस समय
समय के साथ
चीजें होती गई प्यारी,
रिश्ते होते गए भारी.
बादलों के भी बदल गए
हाव-भाव,
प्रकृति में भी आये
ढेरों बदलाव.
पर,
सूरज ,चाँद,सितारों की तरह
नहीं बदले आप,
नहीं बदला
जीवन के प्रति आपका नजरिया
नहीं बदला
सबके लिए आपका स्नेह,
सबके लिए प्यार
रिश्तों के प्रति आपका लगाव,
क्षितिज तक दिखता है
जिसका विस्तार आज भी,
गहराई लगती है समंदर सी.
आपसे ही उगता था
सूरज हमारी उम्मीदों का,
आपकी उंगलियाँ ही देती थी
दिशाएं हमारे जीवन को,
आपका साहस,आपका धैर्य था
हमारा संबल.
अभाव के बादल
उमड़ते-घुमड़ते रहे
गरजते रहे,बरसते रहे
कई-कई दिन,कई-कई रात
मुसलाधार
लगातार.
फ़िरभी,
नहीं तोड़ पाए
विश्वास पर टिका
आपका फौलादी मनोबल.
नहीं डिगा पाए आपको
आपके अपनाये रास्ते से,
नहीं तोड़ पाए रिश्तों का घेरा
जो आपने डाल रखा था
अपने चारो ओर
क्योंकि
आपने कभी नहीं तोला इन्हें
उस तराजू में
जो झुक रहा था दूसरी ओर.
बन गए मानदंड
हमारे लिए
जिसके सहारे पढ़ पाए थे हम,
मूल्यों के उतर-चढ़ाव,
कर पाए थे
बदलाव का मूल्यांकन.
आपके अपनाये मूल्यों में
तौल पाए थे
स्वयं को,
औरों को उस तराजू में.
लगा कितने छोटे हो गए हैं हम.
अगर आप बदल जाते
तो शायद हम बन जाते
ऐसा सोचते थे हम.
पर,
आपको कहाँ था स्वीकार
रोटी का आप पर हावी हो जाना.
भले ही कुरते पर क्यों न लगे हों
सैकड़ो पैबंद,
पर नहीं था आपको स्वीकार
चरित्र के कोरेपन पर कोई दाग.
आप दर्पण थे
व्यवहार में सदाचार के,
अपने आदर्शों के,अपने विचार के
जो आज भी ध्रुवतारा बनकर
हमें भटकाव से बचाता है .
हमने सोचा था
यदि आप बदल जाते
तो शायद हमारे दिन फिर जाते ,
संवर जाता हमारा आनेवाला कल.
लेकिन आज
जब किनारे खड़ा
समंदर को देखता हूँ
तो लगता है
तब सावन जरूर आता,
पर हमारे आँखों का पानी ले जाता.
हम कभी नहीं जान पाते
हमनें क्या खोया,
हमनें क्या पाया.
(परम आदरणीय बाबूजी को सादर समर्पित जो जीवन-भर अपने अपनाये गए मूल्यों को बचाने में लगे रहे)
मूल्यों के प्रति शॉंतचित्त प्रतिबद्धता भाग्य से ही प्राप्त होती है और गौरव की बात है। बाबूजी को सादर प्रणाम।
ReplyDeleteलेकिन आज
ReplyDeleteजब किनारे खड़ा
समंदर को देखता हूँ
तो लगता है
तब सावन जरूर आता,
पर हमारे आँखों का पानी ले जाता.
हम कभी नहीं जान पाते
हमनें क्या खोया,
हमनें क्या पाया.
kitna sahi kaha raajiv jee aapne....jindagi to badal sakti thi, par aankho ka paani nhi rah pata....:)
chachajii ko naman!!!
एक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
भावों का सुन्दर प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDelete... ab kyaa kahen ... ek shaandaar bhaavpoorn rachanaa !!!
ReplyDeleteबदला तो बस समय
ReplyDeleteसमय के साथ
चीजें होती गई प्यारी,
रिश्ते होते गए भारी.
बादलों के भी बदल गए
हाव-भाव,
प्रकृति में भी आये
ढेरों बदलाव.
aakhir kab tak ? phir hoga parivartan , rishte honge zarurat
पिता को समर्पित यह कविता इमानदारी से लिखी कविता लग रही है..
ReplyDeleteपिता रिश्ते नहीं मानों पद को संबोधित.
ReplyDeleteस्थापित मानदण्डों में खप जाना अधिक लगे तो स्वयं के मानदण्ड बना लें, पर जीवन के अवमूल्यन का कोई आधार हो।
ReplyDeleteआप दर्पण थे
ReplyDeleteव्यवहार में सदाचार के,
अपने आदर्शों के,अपने विचार के
जो आज भी ध्रुवतारा बनकर
हमें भटकाव से बचाता है .
हमने सोचा था
यदि आप बादल जाते
तो शायद हमारे दिन फिर जाते ,
संवर जाता हमारा आनेवाला कल.
कितनी सही बात कही है आपने. हमने सिर्फ पाया ही है जब जब उनकी बात नहीं मानी तभी कुछ खोया है
बहुत ही बेहतरीन रचना... दिल की गहराईयों को छू गई.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
वो मूल्य जो उन्होंने जीवन भर माने और उनके लिए ही जिए उन पिताश्री को मेरी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबहुत उम्दा.
ReplyDeleteबाबू जी को नमन!!
veena srivastava to me
ReplyDelete"पर,
आपको कहाँ था स्वीकार
रोटी का आप पर हावी हो जाना.
भले ही कुरते पर क्यों न लगे हों
सैकड़ो पैबंद,
पर नहीं था आपको स्वीकार
चरित्र के कोरेपन पर कोई दाग."
बहुत सुंदर पंक्तियां....पूरी कविता ही बहुत अच्छी हैं। ये हमारे माता-पिता के दिये संस्कार ही हैं कि आज हम सिर उठाकर जी रहे हैं...ये कला भी तो उन्हीं की देन है....
दिल की गहराईयों को छू गई.... बहुत ही बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteachhi rachna.....
ReplyDeleteयह कविता कमेन्ट के योग्य नहीं है... न यह कहने योग्य है कि कविता बहुत अच्छी है..यह एक नमन करने योग्य रचना है जो समर्पित है बाबू जी को.. इनमें हर किसी को अपने पिता कि झलक दिखती है और यही सच्ची प्रतिक्रया है!!
ReplyDeletebahut bhaavpurn rachna, atisundar, babu ji ko naman, aapko badhai rajiv ji.
ReplyDeleteहमने सोचा था
ReplyDeleteयदि आप बादल जाते
तो शायद हमारे दिन फिर जाते ,
संवर जाता हमारा आनेवाला कल.
लेकिन आज
जब किनारे खड़ा
समंदर को देखता हूँ
तो लगता है
तब सावन जरूर आता,
पर हमारे आँखों का पानी ले जाता.
हम कभी नहीं जान पाते
हमनें क्या खोया,
हमनें क्या पाया.
यही नैतिक मूल्य धरोहर बने हुए हैं ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
पिता को समर्पित एक बहुत ही भावपूर्ण और खूबसूरत रचना ! आपकी इस रचना में मुझे भी अपने बाबूजी का प्रतिबिम्ब दिखाई दिया इसीलिये दिल पर गहराई तक असर कर गयी ! इतनी प्रभावशाली प्रस्तुति के लिये आपको बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से भावों ने कलम पकड़ी है , पिताजी को नमन ..
ReplyDeletemuflis dk to me
ReplyDeleteनमस्कार
एक अलग-सी,अहम्-सी शख्सियत
जो शब्दों की रूप रेखा से कहीं ऊपर है
जो कल्पनाओं के आकाश से भी कहीं ऊंची है
जो सब सच्चाईयों के लिये उजला-सा दर्पण है
जो सभी आँधियों के आगे एक सशक्त दीवार है
जो हर तरह से
आपकी इस अनुपम अद्वितीय रचना में
शब्द-शब्द में सांस ले रही है
हाँ ! वो ही शख्सियत
जिसे हम सब "बाबु जी" कहते हैं
उसी "बाबूजी" से साक्षात्कार करवाती हुई आपकी ये रचना
बहुत बहुत बहुत प्रभावित कर गयी ....
अभिवादन स्वीकारें .
"दानिश" भारती
हर चीज़ के अपने मान दंड होते हैं.अपने मूल्यों के प्रति सचेत करती कविता.
ReplyDeleteआपसे ही उगता था
ReplyDeleteसूरज हमारी उम्मीदों का,
आपकी उंगलियाँ ही देती थी
दिशाएं हमारे जीवन को,
आपका साहस,आपका धैर्य था
हमारा संबल.
अभाव के बादल
उमड़ते-घुमड़ते रहे
गरजते रहे,बरसते रहे
कई-कई दिन,कई-कई रात
मुसलाधार
लगातार
जीवन मूल्यों/सिद्धांतों को बनाना और उस पर अमल करना ,उन्हें बचाए रखना वर्तमान हालातों में बहुत मुश्किल काम है.आपके बाबूजी का इस नज़रिए से कार्य और साहस निस्संदेह सराहनीय है.आप अपनी उक्त कविता में अपनी बात बाखूबी पिरो पाए,अतः आपको साधुवाद.
भावपूर्ण श्रद्धा सुमन !!!
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeletemulyon ko samarpit ujjwal charitra se aapke babuji ko charansparsh pranaam!
7/10
ReplyDeleteबेहतरीन----बेहतरीन
भावपूर्ण प्रभावशाली रचना
तब सावन जरूर आता,
ReplyDeleteपर हमारे आँखों का पानी ले जाता.
wah.ekdam nihshabd hoon.
लेकिन आज
ReplyDeleteजब किनारे खड़ा
समंदर को देखता हूँ
तो लगता है
तब सावन जरूर आता,
पर हमारे आँखों का पानी ले जाता.
हम कभी नहीं जान पाते
हमनें क्या खोया,
हमनें क्या पाया.
बदलते मूल्यों के समाज में,अपने आदर्शों पर अडिग रहने वालों को सादर प्रणाम..बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
आदरणीय कपूर साहब;मुकेश भाई,मनोज जी;वंदना जी;उदय जी,रश्मि प्रभा दीदी;अरुण जी,राहुल जी;प्रवीण जी;रचना जी;साह नवाज जी;सदा जी;रेखा जी; समीर सर;वीणा जी;शेखरभाई,जेन्नी जी;संजय भाई ;सलिल सर;संगीता जी;साधना जी;सरदा जी;मुफलिस सर;यशवंत जी ;कुशुमेश सर;रंजना जी;अनुपमा जी ;उस्ताद जी ;मृदुला जी ,कैलाश जी आप सभी का सादर आभार.
ReplyDeleteआपसे ही उगता था
ReplyDeleteसूरज हमारी उम्मीदों का,
आपकी उंगलियाँ ही देती थी
दिशाएं हमारे जीवन को,
आपका साहस,आपका धैर्य था
हमारा संबल.
निःशब्द कर दिया आपने
आदरणीय राजीव सर काफी दिनों बाद ऑनलाइन आ पाया सो आपकी कविता नहीं पढ़ पाया था.. मानदंड जो हमारे पूर्वजों ने संस्कारों के बांधे थे वे ही हमारा मार्गदर्शन करते थे... समाज का चरित्र निर्धारण वहीँ से होता था.. लेकिन आज परम्पराएं टूट रही हैं.. इस संक्रमण के दौर में आपका यह मानदंड जीवन का दर्शन बन सकता है... क्या करूँ राजीव सर आपकी कविता पढ़ कर मुझे अंग्रेजी कवितायें याद आ जाती हैं.. आपने भी पढ़ी होंगी.. रोबेर्ट बर्न्स की कविता "माई फादर वाज़ ए फार्मर ". कुछ पंक्तियाँ देखिये...
ReplyDelete"My father was a farmer upon a Carrick Border
And carefully he bred me in decency and order
He bade me act a manly part, though I had never a farthing
For without an honest manly heart, no man was worth regarding "
संवेदना और कंटेंट के स्तर पर आप आज के कवियों से कहीं अधिक आगे हैं.. शुभकामना सहित...