अंगूठा
नहीं होता
सिर्फ अंगूठा
अंगूठा होता है पहचान
अलग-अलग इंसानों का ।
अंगूठा होता है हस्ताक्षर
गरीबों का, मजबूरों का
मजदूरों और किसानों का ,
जो होते तो सुघड़ हैं
पर,
रह जाते हैं अनपढ़ ।
क्योंकि नहीं पकड़ाई गई होती
उन अंगूठों को कलम।
अंगूठे में होता है समर्पण,
भरा होता है विश्वास ,
इसमें होती निष्ठा है
और होती है ताकत
कर्मफल तोड़ने की।
.
अंगूठा से ही बनाता है कोई देश,
इससे ही तय होती है
उसके उत्थान की दिशा
क्योंकि यही होता है
उसके श्रम का आधार,
ज्ञान का सूत्रधार.
अंगूठा होता है एकलव्य,
अंगूठा होता है अर्जुन,
पर,उन द्रोनाचार्यों का क्या करें
जो मांग लेते हैं अंगूठा ही दान
यदि दिखती है उसमें जान.
अंगूठा होता है
कर्मठ किसान,
लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित
हमारा अन्नदाता,हमारा भगवान
जब तक नहीं लगाया होता है अंगूठा
कोरे कागज पर साहूकार के
और बन जाता है
अपने ही खेतों में मजदूर
रखकर गिरवी अपना खेत,
अपना जीवन, अपने सपने,अपना सम्मान,
इस बात से अनजान कि उधारी खाद और बीज
उगलेंगे सोने जैसी फसल
या बाटेंगे बदहाली और मौत.
अंगूठा तो अंग्रेजों ने भी लगवाया था
हमारे पूर्वजों से,
बनाकर गुलाम
पहुचाया था अपनी माटी से दूर
लेकिन उन अंगूठों ने ही लिखी
अपनी आजादी की इबारत एक दिन,
हो गए सदियों की गुलामी से मुक्त
बनाकर अपना नया देश।
अंगूठा
ReplyDeleteनहीं होता
सिर्फ अंगूठा
अंगूठा होता है पहचान
-सुन्दरता से अंगूठे की महिमा को वर्णित किया है.
अंगूठा होता है एकलव्य,
ReplyDeleteअंगूठा होता है अर्जुन,
पर,उन द्रोनाचार्यों का क्या करें
जो मांग लेते हैं अंगूठा ही दान
यदि दिखती है उसमें जान.
kadwe satya ke garal ko ujaagar kiya hai
अंगूठा भी क्या गज़ब अंग है अपने शरीर का...
ReplyDeleteयह न हो तो इंसान के आधे से ज्यादा काम ठप्प पड़ जाते हैं..
बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने अंगूठे को जीवन से जोड़ कर पेश किया है.. अच्छा लगा...
आभार
बहुत सटीक अंगूठे की पहचान ....अच्छी रचना
ReplyDeleteक्या बात है अंगूठे की. हाँ,अंगूठा ठेंगा दिखाने के काम में भी लोग इस्तेमाल करते हैं
ReplyDeleteला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteअंगूठे को जीवन से जोड़ कर पेश किया है
अंगूठा होता है
ReplyDeleteकर्मठ किसान,
लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित
हमारा अन्नदाता,हमारा भगवान
यकीनन अंगूठा नहीं होता महज़ अंगूठा
लाजवाब
बहुत सटीक अंगूठे की पहचान ..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
ReplyDeleteअंगूठे न होते तो आजादी नहीं मिलती..
ReplyDeleteअंगूठा पहचान है ; सुंदरता से इस बात को स्थापित करती हुई रचना!
ReplyDeleteआभार!
Anguthe ki pahchaan karwane ke liye sukriya...:)
ReplyDeletekavi hriday bhi kya hai, kis kis bimb ko apne kavita me le aata hai..........aur kitne bakhubi se usko chitrit bhi kar deta hai...badhai..!!
अँगूठे का सुन्दर वर्णन। आज यही देख कर दुख होता है कि वही लोग अँगूठा दिखाने लगे हैं।
ReplyDeleteअंगूठा होता है एकलव्य,
ReplyDeleteअंगूठा होता है अर्जुन,
पर,उन द्रोनाचार्यों का क्या करें
जो मांग लेते हैं अंगूठा ही दान
यदि दिखती है उसमें जान.
अंगूठे की महत्ता का बहुत हे सार्थक और सुन्दर चित्रण..बधाई
आदरणीय राजीव सर
ReplyDeleteविलक्षण विषय उठाया है आपने. अंगूठा... अंगूठे के माध्यम से श्रम की महत्ता को आपने अभिव्यक्त किया है. मुझे अंग्रेजी की प्रसिद्द कविता 'ओड तू थम्ब' जिसके कवि हैं रॉबर्ट कर्टिस .. उनकी कुछ पंक्तिया आपकी कविता को समर्पित...
"...The Thumb turned upwards brings forth a grin.
It's the international sign for good fortune.
The victor is also of times praised.
With this distant and silent digit raised."
आपकी हिंदी की कविताओं में भी संवेदना का स्तर अंग्रेजी खास तौर पर यूरोपीय कविता की संवेदना है.. सादर
behtareen....
ReplyDeletekunwar ji,
सब कुछ होता है अंगूठा,
ReplyDeleteकभी छुपा तो ताकत भी बना,
कभी दिखा तो आफ़त भी बना,
अंगूठा होता है पहचान,
गिरा तो अपमान,
और उठा तो सम्मान,
अंगूठा होता है ह्स्ताक्षर,
कभी अंदर,
कभी बाहर,
अंगूठे में होता है समर्पण,
कभी दर्पण,
कभी अर्पण,
अंगूठे से ही बनाता है कोई देश,
कोई भेष,
--विशेष,
अंगूठा होता है एकलव्य,
कभी श्रव्य,
कभी द्रव्य,
अंगूठा होता है कर्मठ किसान,
उंगलियों की जान,
और हाथों की शान...
राजीव सुपुत्र
ReplyDeleteचिरंजीव भवः
आपकी कविता पढ़ी
एक दम स्टीक भावपूर्ण
एक प्रश्नं ?
क्या हम स्वतंत्र है विचारों से
स्वतंत्रता तो मिली फिरंगीयों से देश को स्वतंत्र कराने की
मुझे आज भी याद है लार्ड माऊंटबेटन के शब्द जो भार के के नेताओं से कहे थे देश तो स्वतंत्र करवा लिया हमसे देश को चालाने के लिया कोई योग्य नेता भी हो
क्षमा करना छोटे मुहँ बड़ी बात
क्या देश में शिक्षा प्रणाली फिरंगियों की नहीं
हमारी ही फूट ने पहले मुग़ल फिर फिरंगी
अब दोष भी उनको ही देते हैं
बहुत खूब... अंगूठे की हर मुम्किन व्याख्या की है... बहुत खूब... मेरे काम भी यही अंगूठा आया था अपने माता-पिता को बताने के लिए कि अब मै ठीक हूँ...
ReplyDeleteबस कोई वाक्य याद आ गया, सो लिख दिया...
आपकी रचना लाज़वाब है...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत खूब ... ये सच है की अंगूठा पहचान है ... बहुत सी बातों की शुरुआत है ....
ReplyDeleteबहुत ही शशक्त रचना है ...
भाई राजीव जी ! पढ़ तो आपको कई दिन से रहा था ...पर आपके ब्लॉग पर, विधिवत आज पहली बार आया हूँ. अब धीरे-धीरे आपकी सारी रचनाएँ पढ़नी पढ़ेंगी ..."अंगूठा" रचना बहुत अच्छी लगी ........आपका लेखन बड़ा ही परिष्कृत और संतुलित होता है .....दोनों भाषाओं पर काव्याभिव्यक्ति की दृष्टि से अच्छा अधिकार और विषयों का चयन आपके लेखन को नयी ऊंचाइयों तक ले जाता है. .......लेखन तो केवल अनुभूतियों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति भर है........प्रशंसा तो साइड प्रोडक्ट है.ब्लॉग जगत और साहित्य जगत को आपकी सदा आवश्यकता रहेगी. मेरी मंगल-कामनाएं ....अलख जगाये रखने और अच्छे लेखन के लिए.
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