कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
छल-प्रपंच से भरे विश्व में
मानव तू कुछ न पायेगा,
भौतिकता का अंत नहीं है
कौन तुझे ये बतलायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
माया की इस मरूभूमि में
मोह संग क्यों दौड़ लगाता,
तृष्णा की तृप्ति से पहले
तू अनंत में खो जायेगा .
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
तृष्णा ही तृष्णा इस जग में ,
कहीं शांति का क्या तू पायेगा
सुषमा की इस भरी सभा से
दूर कभी क्या हो पायेगा ?
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
ऐसा बीता हर-पल,हर-क्षण
नहीं समझ पाया तेरा मन ,
सुख-सागर में लिप्त हुआ जो
किसको फिर वह समझाएगा .
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
तुमनें सोचा होगा पहले
दुनियां में सुख ही सुख होगा,
भ्रामकता के गहन तिमिर में
असमय ही तू खो जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
सत्य समय की डोर न थामे,
समय सत्य की बांह पकड़ता,
एक समय ऐसा आएगा ,
मिटटी में तू मिल जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
तोड़ ले नाता भौतिकता से
उससे नेह लगा ले मानव
समय कहीं अनजान डगर
मंजिल बनकर मिल जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा
(वर्ष 1979 में लिखी थी)
www.ghonsla.blogspot.com पर देखें.
क्यों न खोना पाना निपटा कर हिसाब नक्की कर लिया जाय.
ReplyDeleteसत्य समय की डोर न थामे,
ReplyDeleteसमय सत्य की बांह पकड़ता,
एक समय ऐसा आएगा ,
मिटटी में तू मिल जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
kitna sach kaha aapne
jahan se aaye hain, wahi mil jana hai
fir bhi ye mrig trishna kahe ka
sab kuchh pane ka.........
ek ashadharan rachna
nav varsh ki subhkamnayen........
Aadarneey rahul sir bahut-bahut abhar.Mukesh bhai,aisa kabhi sochata tha ,aaj to saansarikta mein ulajhkar rah gaya hun.Lekin jeevan ki nashwarta ko harpal yaad rakhata hun.
ReplyDeleteHansraj sugya
ReplyDeleteto me
राजीव जी,
बहुत ही सात्विक शुद्ध विचारों से ओत प्रोत शान्त-रस की यह रचना मन को भा गई।
इसे पढवानें का आभार्। ऐसे ही शुभ्र विचारों से अमृत बरसाते रहें।
आदर सहित
सुज्ञ
vandana gupta
ReplyDeleteto me
बस इसी जंजाल में फँसा रहता है इंसान और खाली हाथ आता है और खाली ही चला जाता है ..........दुनिया ना कभी किसी की हुई है और ना होगी सिर्फ इतना नहीं समझ पता है.............सुन्दर अभिव्यक्ति
तोड़ ले नाता भौतिकता से
ReplyDeleteउससे नेह लगा ले मानव
समय कहीं अनजान डगर
मंजिल बनकर मिल जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा
बहुत ही सार्थक सोच..हम यह जानते हुए कि इस दुनियाँ से कुछ नहीं मिलेगा, फिर भी इस के माया जाल से नहीं उबर पाते हैं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें.
Ranjana
ReplyDeleteto me
सत्य कहा...भौतिकता के भूख से बिना उबरे सात्विक सुख की कामना बस सपना ही बना रह जायेगा...
बहुत सुन्दर ढंग से इस यथार्थ को आपने कविता में गूंथा है,प्रेरणाप्रद कल्याणकारी बहुत ही सुन्दर रचना...
वाह !!!
राजीव भैया ! हिसाब नक्की कर पाना थोड़ा मुश्किल है .....पर याद बनी रहे नश्वरता की ...तो एक पैमाना नियंत्रण के लिए बना रहता है ...हम भटकने से बचे रहते हैं. बहुत अच्छी रचना ....कुछ ऐसे ही भावों को कुछ वर्ष पहले संजोने का प्रयास किया था ...आज वह आपके नाम ...थोड़ी देर में अपने ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा.
ReplyDeleteतोड़ ले नाता भौतिकता से
ReplyDeleteउससे नेह लगा ले मानव
समय कहीं अनजान डगर
मंजिल बनकर मिल जायेगा.
समय रहते अगर यही समझ आ जाए तो क्या कहने...
बहुत सुन्दर ढंग से इस यथार्थ को आपने कविता में गूंथा है,प्रेरणाप्रद कल्याणकारी बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteन कुछ खोता है, न कुछ मिलता है, सब किराये पर मिलता है और मूल्य चुकाना पड़ता है।
ReplyDeleteबहुत सच्ची रचना है...
ReplyDeleteसत्य ऐसा ही होता है...
बहुत-बहुत धन्यवाद इतनी पुरानी रचना को बाँटनें के लिए...
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleterajiv ji,
ReplyDeletejivan ka satya hai ye, hum sabhi bhautikta ke peechhe bhaagte rahte aur ant mein khud ko khaali paate hain, lekin tab tak der chuki hoti hai...
तोड़ ले नाता भौतिकता से
उससे नेह लगा ले मानव
समय कहीं अनजान डगर
मंजिल बनकर मिल जायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा
kaaljayee rachna ke liye badhai aapko.
बहुत सुन्दर प्रेरणाप्रद ........ सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......
ReplyDeleteकुछ न मिलेगा इस दुनियां से
ReplyDeleteसमय व्यर्थ ही खो जायेगा.
छल-प्रपंच से भरे विश्व में
मानव तू कुछ न पायेगा,
भौतिकता का अंत नहीं है
कौन तुझे ये बतलायेगा.
कुछ न मिलेगा इस दुनियां से
समय व्यर्थ ही खो जायेगा.
पूरी लयात्मकता के साथ सुन्दर गीत.पढ़कर अच्छा लगा
bahut hi khubsurat rachna....
ReplyDelete... umdaa !!
ReplyDeleteRajiv jee aaj to kavita ke paridrishya se geyata lagbhag gayab hi ho chuki hai.Manav jivan ka marm samajhane ki koshish insan ne shuru se hi ki hai.Aapka prayas slaghniya hai.Kahin-kahin Bachhan ki jhalak milti hai.
ReplyDeleteमानव खो जायेगा ....सब कुछ मानव का ही तो किया धरा है ...
ReplyDeleteजब जागो तभी सवेरा, अंधे को हरदम अंधेरा।
ReplyDeleteआपने बड़ी खूबसूरती से कुछ अंधों को जगाने की कोशिश की है, इाश्वर करे आपकी कोशिश कामयाब हो।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
ReplyDeleteसर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!
सदाचार - मंगलकामना!
दिल को छूने वाली एक खूबसूरत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
मिलने वाला कुछ नहीं...
ReplyDeleteसत्य है!
सार्थक रचना!