काश!
एकबार हम
तुलसी,सूर और कबीर
जैसे हो पाते,
मौन रहकर सुन पाते
अपने भीतर अनगूंज गूँज
अनहद नाद की.
किसी के होने का अनुभव
अपने भीतर कर
उसमें अपना विश्वास जगा पाते.
निकल आते बाहर
मंदिर-मस्जिद,गिरजा और गुरुद्वारों से,
इन सबको अपने दिल में बसाकर
जला लेते
सम्मान से सम्मान का दीप,
अनुभवों के खेत में
विश्वास की फसल
फिर से उगा पाते,
अपने आत्म-विश्वास को
आस्था में बदल पाते .
दोहराते
रामचरित का दृष्टान्त
बार-बार,कई-कई बार,
अपने घर महाभारत नहीं दोहराते.
मोती बन पिरोये जाते एक सूत्र में
तो शायद आज
यूँ न बिखरते दाना-दाना
अलग-अलग,
अलग-थलग न पड़ जाते.
अब समय आ गया है
उम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
समय आ गया है
यह समझने और समझाने का
हमने ही बांटे हैं
धरती और आकाश,
हमने ही बांटे है
खेत और खलिहान
कुछ अधिक पाने की चाह में.
अब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
samay to jane kab se khada hai , bas pahal karni hai
आज के समय में खत्म या कमजोर पड़ती रचनात्मकता पर रौशनी डालती कविता अच्छी है .. संवेदनशील.. नई सोच वाली कविता..
ReplyDeleteजला लेते
ReplyDeleteसम्मान से सम्मान का दीप,
अनुभवों के खेत में
विश्वास की फसल
फिर से उगा पाते,
अपने आत्म-विश्वास को
आस्था में बदल पाते .
बहुत बढिया......
मुझे आशा है धीरे धीरे सब समझ जायेगे और एक नै भारत का उदय होगा ........
उम्मीद की बंजर जमीन पर विश्वास की फसल उगानी है ...
ReplyDeleteघृणा के कैक्टस को समूल मिटाना है ...
सार्थक सन्देश ...
सशक्त रचना ....!
अब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
बहुत सार्थक सन्देश और प्रेरणा देती रचना। बधाई।
काश!
ReplyDeleteएकबार हम
तुलसी,सूर और कबीर
जैसे हो पाते,
मौन रहकर सुन पाते
अपने भीतर अनगूंज गूँज
अनहद नाद की.
................बहुत सार्थक सन्देश
अब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
बहुत सुंदर संदेश-आशा और विश्वास का संगम....
सुंदर रचना
Vani Sharma to me
ReplyDeleteमैंने भी शायद ऐसा ही कुछ लिख दिया ...
"कंधे मेरे तेरी बन्दूक के लिए नहीं है ...
यू आर माई स्वीटी पाई ...."
vandana gupta to me
ReplyDelete"बेहद गहन और उम्दा प्रस्तुति…………
काश! सच जान पाते ,
सुन पाते तो ये हालात न होते।"
सब हमारा ही किया धरा है।
ReplyDeleteसिर्फ एक शब्द... "काश"
ReplyDeleteवाह...
Aruna kapoor to me
ReplyDeleteएक अलग सी पहचान बनाती,
सुंदर कविता ...धन्यवाद्!
अब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
अरे वाह राजीव जी, आपको तो ये पोस्ट "अमन का पैगाम" पे भेजना चाहिए.वहां ऐसे विचारों का इंतज़ार मासूम जी कर रहे हैं.
बहुत ही सुन्दर और समाज के हित में लेखन है आपका
आदरणीय राजीव सर
ReplyDeleteनमस्कार.. मैं तो आपकी कविता का प्रशंशक हो गया हूँ.. वर्तमान कविता.. आधुनिक जीवन के खोखलेपन को जाहिर कर रहा है ठीक उसी तरह जैसे T.S.Eliot ने अपनी कविता THE HOLLOW MEN में लिखा है.. कुछ पंक्तिया उधृत करता हूँ... यह THE HOLLOW MEN की तीसरी कविता का अंश है..
"This is the dead land
This is cactus land
Here the stone images
Are raised, here they receive
The supplication of a dead man’s hand
Under the twinkle of a fading star.
Is it like this
In death’s other kingdom
Waking alone
At the hour when we are
Trembling with tenderness
Lips that would kiss
Form prayers to broken stone."
ji bahut hi badhiya..
ReplyDeletepadhwaane aur hilaane ke liye shukriya...
kunwar ji,
सुंदर कविता ...धन्यवाद्
ReplyDeletebadalte badalte kis tarah badal gayee jindagi....kash....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteअब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
काश हम सब यह समझ पाते..बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
धरती और आकाश,
ReplyDeleteहमने ही बांटे है
खेत और खलिहान
कुछ अधिक पाने की चाह में
बहुत अच्छी बात कही है ...रामायण से नहीं महभारत से लोंग सीख रहे हैं ..
अब समय आ गया है
ReplyDeleteउम्मीद की बंजर जमीन पर
विश्वास की फसल उगाने का,
घृणा के कैक्टस को काट गिराने का.
...bahut sundar ...samvedanshil rachna.
gyan chand
ReplyDeleteto me
मन की भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति !
वर्तमान समय की विद्रूपताओं को रेखांकित करती हुई आपकी रचना पढ़ कर अच्चा लगा.!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
राजीव जी! जिस चीज़ की आज सबसे ज़्यादा कमी है समाज में उसे आपने जिन बिम्बों के सहारे दर्शाया है, उससे तो कायल हो गया आपका.. बेहतरीन!!
ReplyDeleteसमय आ गया है
ReplyDeleteयह समझने और समझाने का
हमने ही बांटे हैं
धरती और आकाश,
हमने ही बांटे है
खेत और खलिहान
कुछ अधिक पाने की चाह में
एक शायर ने कहा है कि:
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में बॉंट दिया भगवान को
नदियॉं बॉंटी सागर बॉंटे, मत बॉंटो इंसान को।
मेरी रचना को अपने दिल में स्थान देने के लिए
ReplyDeleteमैं आप सबका आभारी हूँ .
सादर..
निकल आते बाहर
ReplyDeleteमंदिर-मस्जिद,गिरजा और गुरुद्वारों से,
इन सबको अपने दिल में बसाकर
जला लेते
सम्मान से सम्मान का दीप,
बहुत खूब ...इन हालातों ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है , हमें सारे भेद मिटाकर सिर्फ इंसानियत को महता देनी चाहिए ....शुक्रिया
बहुत खूब लिखा है.शुक्रिया
ReplyDeletepyari rachna:)
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