अपनी सारी विविधताओं,
अपनी सारी विषमताओं
अपनी बदमिजाजी ,
अपनी सारी बदगुमानी ,
अपनी झोपड़पट्टीयों,
अट्टालिकाओं के साथ
दिल्ली
कब मेरे दिल में
समां गई
पता ही नहीं चला.
इसके बहते नाले,
इसकी सूखी नदियाँ,
इसके भीड़-भरे चौराहे
कब मन को भा गए,
पता ही नहीं चला.
यह भी पता नहीं चला
कब वह मुझमें
और मैं
उसमें समा गया .
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