जब
हम मिले
पहली बार
संबंधों की नीवं पड़ी ,
रोपा गया
प्रेम-बीज
आँगन में
और
होने लगी
आनंद की बरसात.
समय
आगे बढ़ा
बीज
पौधा बना ,
बढ़ता गया,बढ़ता गया
और
एकदिन
बन बैठा
हरा-भरा
बटवृक्ष
प्रेम का
फिर
बह चली
आनंद-धार
सागर की ओर
क्षितिज के पार
जहाँ मिलते हैं
धरती और आकाश
और
पा गयी
एक अंतहीन विस्तार
जीवन सा .
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