Tuesday, May 25, 2010

नजरिया

शब्द
कभी सूरज
हुआ करता था
मेरे मन-आँगन का
चमकता हुआ,
आज तो
वह एक गोली है
लोहे की जंग लगी .

शब्द
कभी चाँद सा
चेहरा
हुआ करता था
मेरे प्यार का
सलोना सा ,
अब तो
सूखी रोटी सा
नजर आता है
दागों भरा.

शब्द
कभी
सितारों सा
जगमगाया करता था
उसके आँचल में
जुगनुओं की तरह
आज तो
नदी की
चमकती रेत
नजर आता है .

1 comment: