Monday, November 8, 2010

प्रेम-धार बहने दो

1
प्रेम-धार बहने दो

प्रेम यज्ञ आज करो
औरों को प्यार करो
सारे रार रहने दो
प्रेम-धार बहने दो.

रिश्तों का सार बनो
सबके साथ-साथ चलो
मन के तार जुड़ने दो
प्रेम-धार बहने दो.

मन में रखो आस तुम
अपनों में विश्वास तुम
स्वयं को आगे बढ़ने दो
प्रेम-धार बहने दो.

हाथों को थाम लो
सबसे स्वयं से को बांध लो
इस क्रम को चलने दो
प्रेम-धार बहने दो.

2

दूसरा अंतर्मन

तुम्हारा अंतर्मन
नागफनी का घना वन है,
तेरे काँटों की चुभन लिए मैं
एक दूसरा अंतर्मन .

तुम्हारी आँखों का शिकारीपन,
मेरे आँखों से झलकता डर,
मेरा अकेलापन.

आखिर किस रिश्ते से जुड़े हैं
हम : मैं और तुम?
कभी फुर्सत मिले तो बताना.


3

बावरी

कैसी बावरी थी मैं
तू सामने था
और मै
तुझे ढूंढ़ रही थी
अपने मन के वीराने में.

4 comments:

  1. प्रेम को नया आयाम देती ये तीनो कवितायें.. छोटी हैं किन्तु प्रभावशाली अभिव्यक्ति हैं..

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  2. teenon kainwas alag alag rang me... yahan kuch pal thahar gai
    कैसी बावरी थी मैं
    तू सामने था
    और मै
    तुझे ढूंढ़ रही थी
    अपने मन के वीराने में.

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  3. सच ही है अगर प्रेम की धार पैनी हो तो अंतर्मन बावरा हो ही जाता है

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  4. प्रेम धार ही भागीरथी बन मरों को जिलायेगी।

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