Tuesday, October 12, 2010

बेटियां नहीं अब बोझ.....

धीरे-धीरे ही सही
बदल रही है सोच,
सोच की दिशा
हो रही है उत्तरायण,
बहने लगी है
परिवर्तन की बयार .

होती रही होगी
बिटिया कभी बोझ,
झुकाती रही होगी माथा
अपने माँ-बाप का
क्योंकि
उसे मिला होगा
कुंठित,संकुचित,
झूठी प्रतिष्टा का पैरोकार
सहमा हुआ समाज,
जो नहीं लांघने देता था देहरी
पीहर हो या ससुराल.

अब लोग
बेटियों को
नहीं मानते बोझ,
पूर्व-जन्म का पाप.
नहीं कहते हैं
उसे पराया धन .

अब तो
मां-बाप मांगने लगे है
ईश्वर से वरदान ,
झोली में देना
बिटिया ही दान.

पूछने लगे हैं
खुद से ही सवाल:
ऐसा क्या किया है बेटे ने
जो बिटिया ने नहीं किया,
फिर भी,
क्यों नहीं मिल रही.
उसे पहचान ?

आज
वह भी
कमा रही है नाम,
बढ़ रही है आगे
कंधे-से-कंधे मिलाकर,
बढ़ा रही है
जननी,
जन्म-भूमि का मान.

अब नहीं चाहिए
उसे वैशाखी
समाज की ,
बस चाहिए
एक कंधा
स्नेह- भरा
मां का हो या बाप का







26 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा……………आज यही चाहिये एक उम्दा सकारात्मक सोच को दर्शाती कविता।

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  2. आज तो बहुत गम्भीर विषय पर लिखा । सही बात है

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  3. बहुत अच्छी सकारात्मक सोच

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  4. सहमत हूँ बच्चियां आज के समय में बोझ नहीं हैं ... रचना के भाव बहुत बढ़िया है ...

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  5. sach kaha aapne... bas ab yahee asha hai kee yah soch yoonhee banee rahe tatha badhtee rahe aur sameeche desh kee soch ban jaaye...

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  6. हो रही है उत्तरायण,
    बहने लगी है
    परिवर्तन की बयार .
    kahte hain sab , per jis samasya se log grasit the , wah to lagbhag kayam hi hai ...
    haan poorv se parivartan hai , per adhoora hai

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  7. मेरे हिसाब से बेटियाँ कभी बोझ नहीं रहीं ..मैं इस दुनिया में हूँ मेरे माता-पिता के बेटी की चाह के कारण ही...वो भी आज से २६ साल पहले....

    यह ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई...

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  8. बस चाहिए
    एक कंधा
    स्नेह- भरा
    मां का हो या बाप का..

    बहुत सुन्दर रचना ...अच्छी सोच देती हुई ..

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  9. बहुत सुंदर सोच . काश जो भ्रूण हत्या करवाते हैं वो भी इस बात को समझ लें.

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  10. बहुत सुंदर सोच . बहुत सुन्दर रचना....भाव बहुत बढ़िया है ...
    ...सकारात्मक

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  11. वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।

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  12. एक सुकून सा हुआ आपकी कविता पढकर .
    अच्छी सोच दर्शाती हुई रचना.
    बहुत सुन्दर.

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  13. bilkul sahi Rajeev ji.... aj betiya yakinan bojh nahin balki sahara sabit ho rahin hain... badi skaratmak rachna....

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  14. हर मॉं किसी न किसी की बेटी होती है और मॉं का सम्‍मान तो हम युगों से करते आ रहे हैं। हॉं संकुचित सोच के कारण कुछ समुदायों में बेटी को बोझ या अवॉंछित संतान अवश्‍य माना जाता रहा है। अच्‍छा है कि समय के साथ सोच बदल रही है और आज अधिकॉंश समाज बेटी और बेटे में अंतर नहीं करते।

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  15. अब नहीं चाहिए
    उसे वैशाखी
    समाज की ,
    बस चाहिए
    एक कंधा
    स्नेह- भरा
    मां का हो या बाप का


    बहुत ही बढ़िया रचना राजेन्द्र जी ,इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए आपको बधाई


    महक

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  16. अब नहीं चाहिए
    उसे वैशाखी
    समाज की ,
    बस चाहिए
    एक कंधा
    स्नेह- भरा
    मां का हो या बाप का

    सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती ..शानदार प्रेरक ब्लोगिंग के लिए आभार..लेकिन इस देश और समाज में मां बाप का भरपूर साथ होने के बाबजूद भी बेटियों के सामने कई प्रकार की समस्याएं हैं जो भ्रष्ट और असामाजिक राजनितिक तत्वों द्वारा समय-समय पर पैदा की जाती है ..ऐसे असामाजिक तत्वों को सख्त से सख्त सजा जब मिलने लगेगी बेटियां सचमुच समाज का बोझ उठाने लायक हो जाएगी ...

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  17. 5/10

    रचना ताजगीपूर्ण है / पठनीय

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  18. बिल्कुल सही ,
    एक उम्दा सकारात्मक सोच को दर्शाती कविता।

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  19. kavita verma
    to me
    "BAHUT SUNDAR...SAMAJ ME BETIYON KE LIYE BAHUT BADLAV HUE HAI KHAS KAR MATA PITA KI SOCH ME ....AAGE BHI BETIYA MATA PITA KA SIR UCHAN KARTI RAHE AUR MATA PITA UNHE PA KAR KHUSH HOTE RAHE....YAHI KAMNA..."
    Kavita jee bahut-bahut abhar.

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  20. सुन्दर सकारात्मक सोच। आज कल बेटियाँ बेटों से आगे है। मगर खुद गर्ज लोग शायद कभी नही समझेंगे। बधाई इस रचना के लिये।

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  21. काश हमारा भविष्य यही हो।

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  22. समाज की सोच बदल रही है....आपकी कविता उसी का एक प्रतिबिंब है. बहुत सुंदर.

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  23. Akhtar khan Akela
    to me
    जनाब राजिव भाई आपकी दोनों कविताएँ बेटियाँ नहीं हे बोझ और एक दिन की आज़ादी बहुत बहुत बहतरीन अंदाज़ में लिखी गयी हें यह जीवंत हे इन कविताओं का हर अल्फाज़ का वजन इस समाज के मुख पर कालिख पोतने वालों पर भरी हे मजा आ गया जनाब बहुत दिनों में कुछ अच्छा पढने को तो मिला . शुक्रिया . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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  24. Vijai mathur
    to me
    राजीव जी ,
    आपकी कविता पढ़ीं न केवल अक्षी है बल्कि हकीकत बयान करने वाली है.बिलकुल ठीक कहा अपने आज बेटिओं को अभिशाप नहीं माना जाता वे बेटो कि तरह या उनसे ज्यादा भी कर रही है

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  25. aaj ki Bitiya to Gold medal laati hain.......:)

    ek bahut hi umda, sakaratmak soch rakhne wali kavita........

    waise bhi apne pyare bharat vash ko aage badhane ke liye iss 50% ko aise soch rakhnee hi hogi...hai na...

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