Sunday, September 26, 2010

पगली दीदी

मेरी
दीदी थी वो,
सीधी-सादी,
अच्छी थी वो।
अग्रसोची थी
मेधावी थी वो।

सोच बड़ी थी उनकी,
ऊंची थी
उनके सपनों की उडान।
दृढ-निश्चयी थी,
लगनशील थी,
थी उद्यमिता से भरपूर ।

चेहरे पर उनके सदा
विराजती थी
मृदु-मुस्कान।
घरवाले कहते थे
घर की इज्जत,
घर का मान थी वो.

करना चाहती थी
अपने डैनों पर भरोसा ,
अपने पंखो पर हो सवार
उड़ना चाहती थी उन्मुक्त,
छू लेना चाहती थी
नीली ऊंचाइयां
आसमान की.

बनना चाहती थी
स्वयं अपना नियंता
गढ़ना चाहती थी
अपने लिए
नए प्रतिमान,
जीना चाहती थी
मर्जी का जीवन,
खुद चुनना चाहती थी
अपना जीवन साथी.

खुलकर जीना चाहती थी
अपना वर्तमान,
पक्षियों की तरह
करना चाहती थी परवाज,
रिश्तों के दायरे को
ले जाना चाहती थी
रुढियों के पार.

पर,
समाज के ठेकेदारों,
संस्कृति के पहरेदारों को
रास नहीं आया
उनका सपना
उनका उत्साह.
सह नहीं पाए
अपना संसार बनाने,
बसाने की
उनकी चाहत.
पिंजरे के पंछी सा
जो पाला था उसे.

एक दिन
अपनों ने ही
क़तर दिए
उनके पर,
फ़ेंक दिया बाहर
वो बेबस सी
देखती रहीं,
चाहकर भी
नहीं उगा पाई
नए पंख,
डैनो के सहारे
घिसटती रही,
घिसटते-घिसटते ही
एक दिन
दम तोड़ गई
पिंजरे से बाहर।

(घटना जो मेरे सामने से गुजरती रही साल-दर-साल और आज भी गुजर रही है किसी-न किसी रूप में मेरी नजरों के सामने से.मैं एक मूक साक्षी सा खड़ा हूँ एक किनारे.)

13 comments:

  1. दर्द ही दर्द भरा है……………बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  2. dard bol raha hai............kaise aisee abhivyakti dikha pate hain.....khubsurat!!

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  3. जी रश्मि जी, सच कहा आपने.लेकिन यह तब की बात है जब मैं बहुत छोटा था. आज भी मुझे अफ़सोस है कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया.पर, आज मैं इसके खिलाफ हर रूप में खड़ा होने के लिए तैयार हूँ.

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  4. बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  5. marmik lekin haqueekat yahi hai betiyon ki niyat yahi hai......

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  6. बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  7. ऐसा न सोचें की आपने ही ये पल देखे हैं शायद और भी लोग इस दौर से गुजरें होंगे .पर बहुत मार्मिक पोस्ट है आशा करें लोगों की सोच में सुधार आएगा

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  8. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  9. आपकी रचना बहुत अच्छी है
    आपने जो कुछ लिखा वैसा किसी के साथ न हो यही कामना की जा सकती है. बेहद मार्मिक

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  10. दर्द जब बोलता है तो अभिव्यक्ति बेहद मार्मिक हो जाती है

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  11. bhaut he dard bhari hai ye rachna apke, kabhi kisi ke saath asa nahi hona chiye

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