Wednesday, June 29, 2011

अजन्में का इन्तजार

तुम्हें तो पा लिया,बेटे
लेकिन खो दिए हैं
तेरे इंतजार में बीते
बैचैनी-भरे
पल.
पल जो मन को तरसाते थे,तड़पाते थे,
आशा और निराशा के भंवर में घुमाते थे.

तेरे आने की बात
मन को गुदगुदाती थी ,
तुम्हारे ना आने की बात
हमें डराती थी,
कराती थी विवशताओं का अहसास ,
ह्रदय को शंकाओं से भर जाती थी.

तेरे आते ही ख़त्म हो गए
बेकरारी भरे पल,
ख़त्म हो गया
अजन्में का इन्तजार,
भर गया घर का कोना-कोना
आनंद के अतिरेक से.

तुम्हारे आने से
जीवन को मिल गई है
नई उर्जा,नई दिशा,
मिल गई है एक नई राह
चलने के लिए,
मिल गया है नया आकाश,
नया सूरज,नया चाँद
चमकता हुआ,
रिश्तों की छांव में
जीवन सजाने के लिए .

21 comments:

  1. बेहद कोमल और खूबसूरत एहसास की कविता...

    ReplyDelete
  2. तुम्हें तो पा लिया,बेटे
    लेकिन खो दिए हैं
    तेरे इंतजार में बीते
    बैचैनी-भरे
    पल.
    पल जो मन को तरसाते थे,तड़पाते थे,
    आशा और निराशा के भंवर में घुमाते थे.

    ...बेहद खूबसूरत एहसास

    ReplyDelete
  3. सुन्दर! एक पेरेंट के हृदय की अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  4. इस ख़ुशी में बेचैनी घबराहट के पल स्पष्ट हैं ...

    ReplyDelete
  5. रिश्तो की महक से महकती आपकी कविता
    बेटे के आने से दिल खुश है और मन की चिंता बरक़रार ... ये आपकी लेखनी से पता चलता है भैया

    ReplyDelete
  6. यही तो होता है...
    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने....

    ReplyDelete
  7. कविता अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  8. रिश्तों की सही पहचान दिल और दिमाग को नयी ऊंचायिओं पर ले जाते है. बहुत उम्दा प्रस्तुति सीधे दिल से निकली और दिल को छूती.

    ReplyDelete
  9. जीवन में राहें अनेक हैं, जीने के बहाने अनेक हैं।

    ReplyDelete
  10. vandana gupta to me

    "बहुत सुन्दर ख्याल सजाये है।"

    ReplyDelete
  11. Rekha Srivastava to me

    राजीव भाई,
    बहुत सुंदर भावों को उकेरा है. मेरा लैपटॉप बीमार है, दूसरे के से काम चला रही हूँ, इसलिए टिप्पणी नहीं दे पा रही हूँ.

    ReplyDelete
  12. नए जुड़ रहे रिश्ते में बेचनी और ख़ुशी के मिश्रित भाव ...
    सुन्दर एहसास !

    ReplyDelete
  13. tkgiri1@gmail.com to me

    Bahut hi sundar

    ReplyDelete
  14. कोमल अहसासों से लबरेज़ अच्छी कविता.

    ReplyDelete
  15. Dear Rajiv sir

    after a long long time I happen to come online and read your magnificent poem... while reading your poem..I just recall Thomos Hardy's poem UNBORN written in 1905... Sir your literary sensibility is truly European .... read and enjoy that poem also....

    "I rose at night, and visited
    The Cave of the Unborn:
    And crowding shapes surrounded me
    For tidings of the life to be,
    Who long had prayed the silent Head
    To haste its advent morn.

    Their eyes were lit with artless trust,
    Hope thrilled their every tone;
    "A scene the loveliest, is it not?
    A pure delight, a beauty-spot
    Where all is gentle, true and just,
    And darkness is unknown?"

    My heart was anguished for their sake,
    I could not frame a word;
    And they descried my sunken face,
    And seemed to read therein, and trace
    The news that pity would not break,
    Nor truth leave unaverred.

    And as I silently retired
    I turned and watched them still,
    And they came helter-skelter out,
    Driven forward like a rabble rout
    Into the world they had so desired
    By the all-immanent Will."

    ReplyDelete
  16. भावों को बहुत ही भावुक अभिव्यक्ति दी है आपने....

    मन को छू गयी रचना...

    ReplyDelete
  17. bahut achi kavita
    likte rahiye

    ReplyDelete
  18. आप सभी का बहुत-बहुत आभार.

    ReplyDelete
  19. mann ke bhav ujagar ho rahe rachna me...sundar

    ReplyDelete
  20. भावों से परिपूर्ण...

    ReplyDelete
  21. aaj lagta hai aaki alag-alag rachnaon ko padhkar mai jeevan ke har charan ka nazara dekh loongi...
    aur bas waah waah hi karti rah jaungi...

    ReplyDelete